पटाखों के चलाने का फैसला अन्य धर्मों पर भी होना चाहिये

उज्जैन। दीपावली से पूर्व सुप्रीम कोर्ट द्वारा पटाखों की बिक्री को लेकर अपना फैसला सुनाया है जिसके मुताबिक रात 8 से लेकर 10 बजे तक दीपावली पर पटाखे चला सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर क्षेत्रीय सांसद डॉ. चिंतामणि मालवीय ने सोशल मीडिया पर इस बात की टिप्पणी की है कि वह तो रात 10 बजे बाद ही पटाखे चलाएंगे भले ही उन्हें जेल भेज दिया जाये। सांसद का कहना है कि यह आस्था और परंपरा का विषय है। इस संबंध में अन्य लोगों से चर्चा की गई तो उन्होंने अपनी बात इस प्रकार रखी –

वाल्मिकी धाम के संस्थापक बालयोगी संत उमेशनाथ महाराज ने कहा कि भगवान श्रीराम दीपावली पर वनवास से लौटे थे और अयोध्या में उल्लास के साथ उनका स्वागत किया गया था। इसीलिये दीपावली पर आतिशबाजी के साथ यह पर्व मनाया जाता है। सुप्रीम कोर्ट का हम सम्मान करते हैं लेकिन यदि सुप्रीम कोर्ट इस प्रकार का फैसला सनातन धर्म के किसी त्यौहार को लेकर सुनाती है तो फिर अन्य धर्मों को लेकर भी इस प्रकार का फैसला होनाचाहिये क्योंकि अन्य धर्मों के लोग कई बार रात 12 बजे बाद आतिशबाजी करते हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विजय केवलिया का कहना है कि दीपावली पर पटाखे फोडऩा हिंदू धर्म की परंपरा है और यह कब से चल रही है यह कहा नहीं जासकता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ किसी प्रकार की टिप्पणी करना मेरे विचार से अनुचित है। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में भी जो फैसले पटाखे फोडऩे को लेकर सुनाए थे उनमें बाद में परिवर्तन किया है।

म.प्र. जन अभियान परिषद के उपाध्यक्ष प्रदीप पाण्डे से चर्चा की गई तो उन्होंने कहा कि पटाखे फोडऩा एवं आतिशबाजी करना उल्लास का प्रतीक है। इसी प्रकार ढोल, बैण्ड बजाकर भी उत्साह का प्रदर्शन किया जाता है। पर्यावरण का संतुलन बना रहे इसको लेकर आवश्यक कदम उठाये जा सकते हैं।

जैन समाज के वरिष्ठ जम्बू जैन धवल का कहना है कि जैन समाज में तो पटाखे पर पूरी तरह से प्रतिबंध है क्योंकि इससे जीव हत्या होती है। दीपावली भगवान महावीर का निर्वाण दिवस दीपावली से पहले समाज केबच्चे पटाखा नहीं फोडऩे की शपथ लेते हैं।

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