प्राचीन धरोहर:पहली बार श्रावण में घर बैठे कीजिए एक हजार साल पुरानी शिवजी की दुर्लभ प्रतिमाओं के दर्शन

  • पुरातत्व संग्रहालय में रखी 10वीं और 11वीं शताब्दी की यह प्रतिमाएं उज्जैन में ही वर्षों पहले मिली थी

श्रावण माह में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने वाले देश-विदेश से भक्तजन शहर आते हैं। वहीं शहर के 84 महादेव और अन्य शिव मंदिरों में भी पूरे श्रावण माह भक्त पूजन-अर्चन के लिए पहुंचते हैं लेकिन विक्रम विश्वविद्यालय के पुरातत्व संग्रहालय में शिवजी की ऐसी प्राचीन प्रतिमाएं भी हैं, जो एक हजार वर्ष से भी ज्यादा पुरानी हैं। जिन्हें आमतौर पर अब तक शहरवासियों ने नहीं देखा। श्रावण माह  में उज्जैन लाइव  में पहली बार इन प्राचीन प्रतिमाओं को प्रकाशित किया जा रहा है, ताकि भक्तजन घर बैठे ही 10वीं और 11वीं शताब्दी की इन दुर्लभ प्रतिमाओं के दर्शन कर सकें।

विक्रम कीर्ति मंदिर के समीप स्थित विक्रम विश्वविद्यालय के पुरातत्व संग्रहालय में यह प्राचीन प्रतिमाएं संरक्षित हैं। पुरातत्वविद् एवं विश्वविद्यालय के उत्खनन प्रभारी डॉ. रमण सोलंकी ने बताया उज्जैन प्राचीन नगरी होने के कारण यहां कई बार ऐसी दुर्लभ प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं। अधिकांश प्रतिमाएं 10वीं और 11वीं शताब्दी की परमार कालीन प्रतिमाएं हैं।

इनमें साढ़े सात फीट ऊंची शिव ईशान की दुर्लभ प्रतिमा भी शामिल हैं। 10वीं शताब्दी की भारी-भरकम इस प्रतिमा को लघु आकार का नंदी लेकर चल रहा है। इस प्रतिमा की खासियत यह है कि इसमें भगवान शिव के बाएं हस्थ में नरमुंड की बायीं आंख से सर्प निकल रहा है और नरमुंड के मस्तक पर फन फैला रहा है।

यह प्रतिमा नाथ संप्रदाय को भी इंगित करती है। 70 के दशक में महाकाल मंदिर क्षेत्र से यह प्रतिमा खुदाई के दौरान मिली थी। 11वीं शताब्दी की परमार कालीन यह प्रतिमा महाकाल क्षेत्र से प्राप्त हुई थी। इस प्रतिमा में आम्र वृक्ष के नीचे शिव-पार्वती नृत्य करते दिखाई देते हैं। खास बात यह है कि प्रतिमा में शिव-पार्वती के अलावा नंदी, गणेश, कार्तिकेय और मूषक भी दृष्ट्रव्य होते हैं। पूरे शिव परिवार का एक ही प्रतिमा में नृत्य करते अंकन दुर्लभ ही देखने को मिलता है।

परमार कालीन शिवलिंग पर अंकित माता पार्वती की प्रतिमा 10वीं शताब्दी की परमार कालीन यह प्रतिमा भी महाकाल क्षेत्र में मिली थी। इसमें जलाधारी शिवलिंगकार के मध्य पार्वती का अंकन है, जो कि बेहद दुर्लभ है। मुख्यत: जलाधारी को ही पार्वती का स्वरूप माना जाता है, यह शास्त्रोक्त है। माता पार्वती की जटाजूट, सौम्य मुखाकृति आदि से तैयार चतुर्हस्था प्रतिमा अंकित है। इनके एक हाथ में कमल, दूसरे में त्रिशूल, तृतीय में कमंडल और चतुर्थ हस्त में बिजोरुप पुष्प हैं।

चैत्य द्वार के साथ 10वीं शताब्दी की उमा-महेश की प्राचीन प्रतिमा 10वीं शताब्दी की परमार कालीन चैत्य द्वार और उमा-महेश की यह प्रतिमा महाकाल क्षेत्र में मिली थी। मंदिर के गर्भगृह से पहले इसी चैत्य द्वार के दर्शन होते हैं। इसके माध्यम से अंदर प्रवेश करते हैं। चैत्याकार इस प्रतिमा में आगे दहलीज और ऊपर शिखर है। वहीं उमा-महेश की प्रतिमा में शिव के साथ पार्वती आसीन हैं। चतुर्हस्था इस प्रतिमा में शिवजी के सिर पर मुकुट है। एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे में सर्प है। तृतीय हस्थ भग्न है।

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