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बिनोद मिल से सरकार का दावा खारिज, नीलाम कर मजदूरों को देंगे 67 करोड़
उज्जैन । हाईकोर्ट इंदौर की डबल बैंच ने बुधवार को बिनोद-विमल मिल के श्रमिकों के भुगतान के लिए जमीन बेचने के निचली कोर्ट के आदेश को कायम रखा। न्यायालय ने 23 मार्च को राज्य सरकार को आदेश दिया था कि जमीन चाहिए तो 67 करोड़ रु. सात दिन में जमा करा दो। सरकार की ओर से पैसा जमा नहीं कराया। इस पर न्यायालय ने सरकार द्वारा लिए स्टे को खारिज कर दिया। अब परिसमापक जमीन बेच कर मजदूरों को बकाया राशि का भुगतान कर सकेंगे। मजदूर संघ के अध्यक्ष ओमप्रकाश भदौरिया के अनुसार मजदूरों की ओर से वेतन ग्रेच्युटी की बकाया राशि 67 करोड़ और उस पर ब्याज मिलाकर कुल 2.5 अरब रु. की मांग की जा रही है। मिल की जमीन हाईकोर्ट के अधीन है। राज्य सरकार की ओर से यह दावा किया था कि जमीन सरकार की है तथा मिल को ताकायमी तक दी थी। सरकार ने न्यायालय में यह भी कहा था कि सरकार मिल मजदूरों की बकाया राशि का भुगतान करने को तैयार है। न्यायालय ने 23 मार्च को मजदूरों की बकाया राशि 67 करोड़ रु. 10 दिन में जमा कराने के आदेश दिए थे। सरकार ने राशि जमा नहीं कराई। इस पर बुधवार को न्यायाधीश डबल बैंच सतीशचंद्र शर्मा व राजीव कुमार दुबे ने सरकार द्वारा लिए स्टे को खारिज कर दिया। सरकार की अपील खारिज करते हुए निचली अदालत के पूर्व में दिए फैसले को कायम रखा। निचली अदालत ने जमीन बेचकर मजदूरों का पैसा चुकाने के आदेश दिए थे। श्रमिकों की ओर से अभिभाषक धीरजसिंह पंवार व बालेंदु द्विवेदी ने पक्ष रखा। इधर संघर्ष समिति अध्यक्ष हरिशंकर शर्मा ने बताया बुधवार को हुई सुनवाई के बारे में गुरुवार शाम 5 बजे मजदूर संघ कार्यालय कोयला फाटक पर श्रमिकों की बैठक होगी। इसमें आगे की रणनीति बनाई जाएगी।
4353 में से 2000 की मृत्यु हो चुकी
बिनोद-बिमल मिल में 4353 मजदूर काम करते थे, जिनका बकाया भुगतान का दावा किया है। इनमें से 2000 मजदूरों की मौत हो चुकी है। श्रमिक नेता रशीद भाई के अनुसार मिल 1991 में बंद हो गए थे। 14 महीने तक आधा वेतन भुगतान करने के बाद मिल बंदी कर दी। 2004 से बकाया भुगतान नहीं होने पर मजदूर संगठन बकाया राशि भुगतान के लिए संघर्ष कर रहे हैं।