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भगवान महाकाल ने जटाशंकर स्वरूप में जाना भक्तों का हाल:सावन के 7वें सोमवार को निकली सवारी; नागचंद्रेश्वर मंदिर में भी दर्शन को उमड़े श्रद्धालु
सावन के सातवें सोमवार को उज्जैन में भगवान महाकाल की सवारी निकाली गई। राजाधिराज महाकाल जटाशंकर स्वरूप में प्रजा का हाल जानने निकले। सोमवार और नागपंचमी का संयोग होने के कारण भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी। मंदिर से सवारी निकलने से पहले सशस्त्र पुलिस बल ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया।
भगवान महाकाल के स्वागत में सड़कों पर रंगोली सजाई गई। सवारी में भक्त शिव के स्वरूप, राधा-कृष्ण, विष्णु-लक्ष्मी समेत कई रूप में झांकियों के रूप में चले। सवारी में आए श्रद्धालु डीजे की धुन पर नाचते-गाते चल रहे थे।
सवारी में चांदी की पालकी में चंद्रमौलेश्वर और हाथी पर मनमहेश की प्रतिमा विराजित थे। वहीं, गरुड़ पर सवार भगवान शिव तांडव की प्रतिमा, नंदी रथ पर उमा महेश, डोल रथ पर होल्कर स्टेट का मुखारविंद, रथ पर घटाटोप और आखिर में जटाशंकर का मुखारविंद शामिल रहे।
सभी प्रतिमाओं का पूजन किया
सवारी निकलने से पहले मंदिर स्थित सभा मंडप में भगवान के सभी स्वरूपों का पूजन किया गया। सवारी मंदिर से प्रारंभ होकर कोट मोहल्ला, गुदरी चौराहा, बक्षी बाजार, कहारवाड़ी होते हुए मोक्षदायिनी शिप्रा के रामघाट पहुंची। यहां शिप्रा जल से भगवान महाकाल का अभिषेक कर पूजा अर्चना की गई। पूजन के बाद सवारी परंपरागत मार्ग से होते हुए पुन: महाकाल मंदिर पहुंची।
नागचंद्रेश्वर के दर्शनों के लिए पहुंचे श्रद्धालु
इससे पहले, बाबा महाकाल और नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे हैं। नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट रविवार आधी रात को खोल दिए गए। ये पट साल में एक बार नागपंचमी पर ही खोले जाते हैं।
सबसे पहले श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विनीत गिरि महाराज ने त्रिकाल पूजन और अभिषेक किया। इसके बाद श्रद्धालुओं के लिए मंदिर खोल दिया गया। पूरा मंदिर परिसर बाबा महाकाल और नागचंद्रेश्वर के जयकारों से गूंज उठा। शहर में श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए नगर निगम सीमा के सभी निजी और सरकारी स्कूलों में अवकाश रहा।
नागपंचमी पर ही मंदिर के पट खुलने की परंपरा
प्राचीनकाल से पंचांग तिथि अनुसार सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन ही इस मंदिर के पट खुलने की परंपरा है। श्री नागचंद्रेश्वर भगवान की यह प्रतिमा 11वीं शताब्दी की है। इस प्रतिमा में फन फैलाए नाग के आसन पर शिव जी के साथ देवी पार्वती बैठी हैं। संभवत: दुनिया में ये एक मात्र ऐसी प्रतिमा है, जिसमें शिवजी नाग शैया पर विराजमान हैं।
मंदिर में शिवजी, मां पार्वती, श्रीगणेश जी के साथ ही सप्तमुखी नाग देव हैं। दोनों के वाहन नंदी और सिंह भी विराजमान हैं। शिव जी के गले और भुजाओं में भी नाग लिपटे हुए हैं।
श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर में 1 घंटे में दर्शन का दावा फेल
दर्शनार्थी चारधाम मंदिर की ओर लाइन में लगकर बैरिकेड से हरिसिद्धि माता मंदिर और फिर बड़े गणेश मंदिर होते हुए श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर पहुंच रहे हैं। मंदिर प्रशासन ने यहां तक जाने के लिए पिछले साल बनाए गए ब्रिज से ही व्यवस्था की है। चारधाम से लाइन में लगने के बाद करीब एक घंटे में लोगों को दर्शन का दावा मंदिर समिति ने किया था। लेकिन जो भक्त रात 3 बजे लाइन में लगे थे वो सुबह 7 बजे बाहर निकले।
नेपाल से लाकर मंदिर में स्थापित की गई श्री नागचंद्रेश्वर प्रतिमा
महाकालेश्वर मंदिर में सबसे नीचे भगवान महाकालेश्वर, दूसरे खंड में ओंकारेश्वर और तीसरे खंड में श्री नागचंद्रेश्वर भगवान का मंदिर है। यह मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के करीब इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। प्रतिमा नेपाल से लाकर मंदिर में स्थापित की गई थी।
नागचंद्रेश्वर मंदिर के लिए यहां से करें प्रवेश
- भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए श्रद्धालु भील समाज धर्मशाला से प्रवेश कर करेंगे। यहां से गंगा गार्डन के पास चारधाम मंदिर, पार्किंग स्थल जिगजैग, हरसिद्धि चौराहा, रूद्रसागर के पास, बड़ा गणेश मंदिर, गेट नंबर 4 या 5, विश्राम धाम, एरोब्रिज से होकर भगवान नागचंद्रेश्वर भगवान के दर्शन किए जा सकेंगे।
- भक्त एरोब्रिज के द्वितीय ओर से रैंप, मार्बल गलियारा, नवनिर्मित मार्ग, प्रीपेड बूथ चौराहा पहुंचेंगे। यहां से द्वार नंबर 4 या 5 के सामने से बड़ा गणेश मंदिर, हरसिद्धि चौराहा, नृसिंह घाट तिराहा होते हुए दोबारा भील समाज धर्मशाला पहुंचेंगे।