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महाकाल की नगरी उज्जैन की शिप्रा मैली, नदी के शुद्धिकरण में अरबों रुपये बहा
मध्य प्रदेश की धर्मधानी उज्जैन में प्रवाहित मां शिप्रा की महिमा पुराण गाते हैं। यह वही सरिता है, जिसमें अमृत गिरा था। यही मोक्षदायिनी का तट हर 12 वर्षों में सिंहस्थ का साक्षी बनता है। इसी में स्नान करने के लिए अपार आस्था लालायित रहती है। मान्यता है कि मां शिप्रा अपने भक्तों को मोक्ष प्रदान करती है। शिप्रा का महात्मय साधु-संत बताते रहते हैं, मगर इन दिनों उज्जैन के सियासत में मोक्षदायिनी का नाम लगातार गूंज रहा है। कारण है- लगातार मैली और सिकुड़ती जा रही शिप्रा।
हालात यह है शिप्रा का आंचल चहुंओर से अशुद्ध हो गया है। आक्सीजन के अभाव में जलीय जीव जैसे मछलियां आदि मर रही हैं। इस सब के बीच राजनीतिक किरदार इसके शुद्धीकरण का मुद्दा फिर उठा रहे हैं। बीते दिनों कांग्रेस प्रत्याशी ने शिप्रा में गंदा पानी मिलने के बीच डुबकी लगाकर इसके शुद्धि का संकल्प लिया।
वहीं कुछ दिनों बाद ही मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने नदी में डुबकी लगा और तैराकी कर कांग्रेस पर पलटवार किया। कहा कि जब चाहे तब यहां नर्मदा का पानी आ जाता है। हमारी सरकार ने काफी काम किया है। वादों और दावों के बीच हकीकत यह है कि मां शिप्रा अशुद्धि के बोझ के साथ-साथ अब सियासी स्वार्थ का भार भी उठा रही है।
इसलिए शिप्रा प्रदूषित
शिप्रा नदी इंदौर जिले के जानापावा की पहाड़ियों से निकल देवास-उज्जैन में 196 किलोमीटर बहने के बाद मंदसौर में चंबल नदी में मिलती है। नदी 80 के दशक से लगातार प्रदूषित, अतिक्रमित हो रही है। शिप्रा के प्रदूषित होने का मुख्य कारण इंदौर, देवास, उज्जैन, रतलाम के नालों का गंदा पानी नदी में मिलना है। विशेषकरण इंदौर का सीवेज युक्त 30 क्यूमेक नालों का गंदा पानी, जो उज्जैन आकर कान्ह नदी के रूप में त्रिवेणी घाट पर मिलता है। महाकुंभ सिंहस्थ- 2016 के बाद तो शिप्रा ओर अधिक प्रदूषित हुई है।
दो दशक में शुद्धि के लिए हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए
बीते दो दशक में शिप्रा की शुद्धि के लिए सरकार ने हजार करोड़ से अधिक रुपया खर्चा है। 402 करोड़ रुपये 2014 में प्राकृतिक प्रवाह से नर्मदा का शिप्रा से मिलन कराने पर खर्चे थे। इसके बाद 2016 में 99 करोड़ रुपये कान्ह डायवर्शन योजना पर खर्चे थे। इस योजना का उद्देश्य कान्ह का गंदा पानी शिप्रा के नहान क्षेत्र (त्रिेवणी घाट से कालियादेह महल तक) में मिलने से रोकना था।
उद्देश्यपूर्ती के लिए राघोपिपल्या गांव से कालियादेह महल के आगे गांव के रास्ते भूमिगत पाइपलाइन बिछाई थी। हालांकि ये योजना पूरी तरह सफल न हुई। इसके बाद 2017 में उज्जैन शहर में 436 करोड़ रुपये की भूमिगत सीवरेज पाइपलाइन परियोजना का काम शुरू कराया जो अब तक अधूरी है।
2019 में 139 करोड़ रुपये की पाइपलाइन योजना धरातल पर उतारी, जिसके तहत इंदौर के गांव मुंडला दोस्तदार स्थित पंपिंग स्टेशन से उज्जैन के त्रिवेणी क्षेत्र तक (1325 मिलीमीटर व्यास की 66.17 किमी लंबी) पाइपलाइन बिछाकर शिप्रा में पानी छोड़ने का बंदोबस्त किया।
अब ये योजना प्रस्तावित, राशि हो चुकी स्वीकृत
598 करोड़ रुपये की कान्ह डायवर्शन क्लोज डक्ट परियोजना : योजना अंतर्गत त्रिवेणी घाट के समीप गोठड़ा गांव में कान्ह पर पांच मीटर ऊंचा स्टापडेम बनाने, यहां से कालियादेह महल के आगे तक 16.5 किलोमीटर लंबा एवं 4.5 बाय 4.5 मीटर चौड़ा पाइपलाइन नुमा आरसीसी बाक्स बनाकर जमीन पर बिछाने काे आमंत्रित निविदा सरकार के पास स्वीकृति की प्रत्याक्षा में सालभर से पड़ी है। दावा है कि इस चोकोर बाक्सनुमा पाइपलाइन से कान्ह का 40 क्यूमेक पानी डायवर्ट किया जा सकेगा। अंतिम 100 मीटर लंबाई में ओपन चैनल का निर्माण किया जाएगा।
कान्ह पर एसटीपी योजना -: स्वच्छ गंगा मिशन अंतर्गत इंदौर में 34, 40, 120 एमएलडी (मिलियन लीटर्स पर-डे) के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने को सालभर पहले सरकार ने 511 करोड़ रुपये मंजूर किए थे। इसके महीनों बाद योजना को क्रियान्वित कराने को 427 करोड़ रूपये का टेंडर आमंत्रित किया। टेंडर खुले कई सप्ताह गुजर गए हैं पर टेंडर स्वीकृत नहीं हुआ है। कहा जा रहा है कि योजना केंद्र की है, इसलिए कुछ वक्त लगेगा।
शिप्रा पर एसटीपी -: स्वच्छ गंगा मिशन अंतर्गत सालभर पहले केंद्र सरकार ने उज्जैन नगर निगम को 95 करोड़ रूपये स्वीकृत किए थे। विधानसभा चुनाव से पहले पीलियाखाल में 22 एमएलडी एवम भैरवगढ़ में 2.4 एमएलडी कंट्रिटमेंट प्लांट लगाने संबंधी निविदा प्रक्रिया की। ये अब तक स्वीकृत न हुई है।
भूमिगत सीवेज पाइपलाइन परियोजना : अमृत मिशन 2.0 अंतर्गत इस साल नगर निगम परिषद ने 473 करोड़ रुपये की भूमिगत सीवरेज पाइपलाइन परियोजना 2.0 स्वीकृत की है। फिलहाल प्रोजेक्ट कागजों पर ही सिमटा है। अगर इच्छाशिक्त से काम हुआ तो भी प्रोजेक्ट 2025 में शुरू हो पाएगा। क्योंकि ये वर्ष तो डीपीआर की तीन स्तर पर स्वीकृति मिलने और फिर निविदा प्रक्रिया करने में ही गुजर जाएगा। सीवरेज प्रोजेक्ट के दूसरे चरण अंतर्गत शहर के 54 में से शेष 21 वार्डों में 103 किलोमीटर लंबी 200 से 600 मिलीमीटर व्यास की भूमिगत पाइपलाइन बिछाई जाना है। प्रदूषित कान्ह नदी के पानी के उपचार के लिए पिपल्याराघौ गांव और उन्हेल चौराहा स्थित साडू माता की बावड़ी के पास सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाना है।