महाकाल मंदिर के छोटे शिखर के स्वर्ण कलश का ऊपरी हिस्सा गिरा

शिखर पर कबूतरों का डेरा, उनके शिकार के लिए बिल्लियां पहुंच जाती है, पहले भी दो बार गिर चुके हैं हिस्से
उज्जैन | महाकालेश्वर मंदिर के शिखर पर लगे छोटे स्वर्ण कलश में से एक का ऊपरी हिस्सा शुक्रवार सुबह गिर गया। जिस जगह गिरा वहां कोई नहीं था। सुबह पंडे-पुजारियों ने सोने के कलश के उस हिस्से को प्रदीप गुरु की बैठक के पास पड़े देखा। इसके बाद मंदिर समिति के सहायक प्रशासनिक अधिकारी चंद्रशेखर जोशी को इसकी सूचना दी। जोशी ने इसे कोठार में जमा कराया है।

इसके पहले भी दो बार स्वर्ण कलश के हिस्से गिरे हैं। मंदिर के शिखर पर मुख्य शिखर व 108 अन्य छोटे शिखर हैं। इन सभी पर सोने के बने कलश लगे हुए हैं। इन कलशों के हिस्से बारिश के बाद मौसम खुलने पर गिरते हैं। जोशी के अनुसार शिखरों को स्क्रू के माध्यम से चूने से बने शिखर में कसा गया है। बारिश में चूना गलने और धूप निकलने पर स्क्रू ढीले हो जाते हैं। शिखर पर कबूतर डेरा डालते हैं और इनके शिकार के लिए बिल्लियां भी शिखर तक पहुंच जाती है। ऐसे में जिस शिखर के स्क्रू ढीले हो जाते हैं वह धक्का लगने से गिर जाते हैं। इन शिखरों से गिरे स्वर्ण शिखरों के हिस्से कोठार में जमा हैं। इन्हें फिर से लगाने के लिए मंदिर प्रबंध समिति में निर्णय किया जाएगा।

2001 से लगना शुरू हुए थे छोटे शिखरों पर स्वर्ण कलश
महाकालेश्वर मंदिर के मुख्य शिखर पर पहला सबसे बड़ा स्वर्ण कलश 2000 में चढ़ाया था। इसके बाद छोटे शिखरों पर स्वर्ण कलश लगाने की शुरुआत 2001 से हो गई थी। इस अभियान की शुरुआत करने वाले पं.रमण त्रिवेदी के अनुसार सभी पंडे-पुजारियों के सहयोग से सभी छोटे शिखरों पर भी स्वर्ण कलश लगाने में 5 से 6 साल लगे थे। सबसे बड़े कलश में 9 किलो सोना लगा था। जबकि छोटों में प्रत्येक में 400 से 550 ग्राम सोना लगा था। यह काम श्रद्धालुओं के दान से पूरा किया था। मंदिर समिति को स्वर्ण कलशों के, मजबूतीकरण और सुरक्षा के लिए विशेषज्ञों से कार्ययोजना बनाकर लागू करना चाहिए।

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