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महाकाल-शाही सवारी:व्यवस्था ठीक करने हमें आगे आना होगा
उज्जैन। (प्रकाश त्रिवेदी) बाबा महाकाल की आज शाही सवारी निकलेगी। बाबा अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए शहर में थोड़ा ज्यादा घूमेंगे। भक्तगण भी पलक-पावड़े बिछाकर अपने राजाधिराज का पूजन-अर्जन-स्वागत करेंगे। बाबा को प्रजा का हाल जानना है और प्रजा को बाबा के दर्शन करना है।
बस इतनी सी बात के लिए शाही सवारी की चिंता में पुलिस, प्रशासन, नेता, जनप्रतिनिधि, मीडिया, नागरिक सब दुबले हुए जा रहे है। सवारी की व्यवस्था चाक-चौबंद होनी चाहिए, भक्तगण आराम से, सुविधाजनक तरीके से बाबा के दर्शन कर सके। भक्तों की सुरक्षा की चिंता भी जायज है, घटना-दुर्घटना के रोकथाम की व्यवस्था भी जरूरी है, पर सब कुछ प्रशासन पर छोड़ देना कहाँ तक उचित है।
प्रशासन का काम व्यवस्था करना है लेकिन वो निर्णय भी कर रहा है। जिन्हें निर्णय करना है वे उदासीन होकर बैठे है और प्रशासन की दुहाई दे रहे है। सवारी कैसे निकलेगी, क्या रूट रहेगा, क्या व्यवस्था रहेगी, पुलिस की भूमिका क्या होगी, प्रशासन क्या करेगा, यह सब सालों से तय है केवल मामूली हेरफेर के साथ सवारी की व्यवस्था तयशुदा शेड्यूल के अनुसार ही होती है। फिर बार बार प्रशासन को दोष क्यों दिया जाए। यदि कोई सुधार किया जाना है तो जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों को आगे आना चाहिए, सत्ता प्रतिष्ठान के अलमबरदारों को अपनी भूमिका निभाना चाहिए। केवल दोष देने, आलोचना करने या कमियां निकालने से कुछ नही होगा।
सवारी के स्वरूप में परिवर्तन जरूरी है। पालकी की ऊंचाई पर निर्णय हो, सवारी में शामिल गैर-जरूरी भक्त-मंडलों की छंटाई भी जरूरी है, सवारी का मार्ग भी विस्तारित किया जा सकता है, सवारी का प्रचार-प्रसार-सीधा प्रसारण वैश्विक स्तर पर हो, सवारी को पूरी की जगन्नाथ यात्रा जैसा कवरेज मिले, इसकी चिंता कौन कर रहा है, सवारी मार्ग को युक्तियुक्त बनाने का प्रयास ठंडे बस्ते में है, चौड़ीकरण अंतिम उपाय नही है।
सवारी के लिए उक्त निर्णय प्रशासन के जिम्मे छोड़ देना जनप्रतिनिधियों और सिविल सोसायटी की कमजोरी है। कुछ दशक पहले तक यह सब निर्णय स्थानीय स्तर पर ही जनप्रतिनिधि, समाजसेवी, गणमान्य नागरिक, विद्वतजन लेते थे, अब इन सबकी भूमिका नगण्य हो गई है। दोषी कौन है?
सब कुछ प्रशासन पर छोड़कर, बाद में उसे कोसना ठीक नही है। उज्जैन के समाज जीवन से जुड़े गणमान्य नागरिकों को आगे आकर अपनी भूमिका बनानी होगी। यह कठिन जरूर है पर असंभव नही है। हमारी परम्पराएँ, पर्व, त्यौहार, कार्यक्रम, हम तय करेंगे, उनको कैसे आयोजित करना है, हम बताएंगे, सवारी में जरूरी परिवर्तन हम करगें, हम सवारी को सुविधाजनक, सहज, लोकव्यापी हम बनायेगे।
तभी सही मायने में बाबा का नगर भ्रमण सार्थक हो सकेगा। पार्षद, विधायक, सांसद, महापौर, निगम अध्यक्ष, राजनीतिक दलों के नेता, समाजसेवी, गणमान्य नागरिक, विद्वतजन, सिविल सोसायटी अपनी भूमिका सही तरीके से निभाए तो सवारी को लेकर चिंता अपने आप कम हो जाएगी। अब यह मत कहिएगा कि हमसे से पूछा ही नही। लोकतंत्र में हस्तक्षेप करने की कोई मनाही नही है। बहरहाल सत्ता और विपक्ष के मौन जनप्रतिनिधियों एवं अपने कार्यालयों में दुबके राजनेताओं से ज्यादा आशा नही है, सिविल सोसायटी को ही आगे आना चाहिए।