श्राद्ध पक्ष : गयाजी तीर्थ के बाद उज्जैन में तर्पण का विशेष महत्व

उज्जैन | सनातन धर्म परंपरा में बिहार के गयाजी तीर्थ के बाद उज्जैन में तर्पण का विशेष महत्व है। उज्जैन में सिद्धवट, गया कोठा और रामघाट पर तर्पण का विधान है। देश-दुनिया से लोग यहां श्राद्ध पक्ष में आते हैं। तीनों ही स्थान का अपना महत्व है। ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास के अनुसार उज्जैन मोक्ष की नगरी है। यहां पर पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध से प्राणी को मोक्ष प्राप्त होता है। सिद्धवट क्षेत्र का शास्त्रों और पुराणों में उल्लेख भी मिलता है।

 

सिद्धवट से इस स्थान पर मिलता है मोक्ष

सिद्धेश्वर महादेव और सिद्ध वट वृक्ष से इस स्थान का प्राणी मोक्ष के लिए प्रमुख स्थान है। गया कोठा बिहार की मोक्ष नगरी गया का प्रतिनिधि स्थान है। इसका भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध के लिए उतना ही महत्व है जितना महत्व गयाजी का है। इसके साथ रामघाट पर भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध स्थान माना जाता है। भगवान राम ने वनवास के दौरान अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध भी उज्जैन आकर रामघाट पर किया था।

 

कौवा पितृ दूत

शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि कौवा एकमात्र ऐसा पक्षी है जो पितृ-दूत कहलाता है। मान्यता है कि दिवंगत परिजनों के लिए बना, गए भोजन को यह पक्षी चख लें, तो पितृ तृप्त हो जाते हैं। श्राद्ध पक्ष में कौवे दिवंगत के हिस्से का भोजन करते हैं। पितरों को शांति मिलती है। पितृ दूत कहलाने वाले कौवे आज नजर नहीं आते। बढ़ते शहरीकरण, पेड़ों की कटाई और ऊंची इमारतों ने कौवों की संख्या को कम कर दिया है।

 

पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध आज

ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास ने बताया कि श्राद्ध पक्ष का आरंभ 13 सितंबर को होगा। इस दिन पूर्णिमा तिथि के पूर्वजों का श्राद्ध होगा तथा 14 सितंबर को एकम तिथि वाले पूर्वजों का श्राद्ध किया जाएगा। इस प्रकार 16 दिन श्राद्ध पक्ष के माने जाएंगे।

 

पितृ आत्माओं की शांति निमित्त किया जाता है श्राद्ध

पं. राजेश त्रिवेदी ने बताया पितृ आत्माओं की शांति व मुक्ति का पर्व श्राद्ध पक्ष १३ से प्रारंभ होगा। पूर्णिमा तिथि पर गयाकोठा मंदिर में हजारों लोग पूर्वजों के निमित्त जल-दूध से तर्पण और पिंडदान करेंगे। पितृपक्ष में सूर्य दक्षिणायन होता है। शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दौरान श्राद्ध तृप्त पितरों की आत्माओं को मुक्ति का मार्ग देता है। कहा जाता है कि इसीलिए पितृ अपने दिवंगत होने की तिथि के दिन पुत्र-पौत्रों से उम्मीद रखते हैं कि कोई श्रद्धापूर्वक उनके उद्धार के लिए पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कार्य करे। श्राद्ध तिथि अनुसार पूर्णिमा से अमावस्या तक होता है।

 

कई पीढ़ीयों की पोथी है पुरोहितों के पास

पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध की विधि में कुल के नाम के साथ पूर्वजों के नाम का उल्लेख का विशेष महत्व है। आम लोगों के कई पीढ़ी और पूर्वजों के नाम याद रखना आसान नहीं होता है। इसमें तीर्थ पुरोहितों के पास उपलब्ध पौथी बड़ी सहायक होती है। उज्जैन के अधिकांश तीर्थ पुरोहितों के पास 500 वर्ष पूर्व के अनेक परिवार के पूर्वजों के नामों की पोथी बनी हुई है।

Leave a Comment