सिस्टम ने तोड़ दी गर्भवती महिला की सांसें:गांव, शहर, जिले और अस्पताल बदलते रहे

शुजालपुर से रेफर प्रसूता को लेकर भोपाल जा रही एंबुलेंस में ऑक्सीजन का सिलेंडर खत्म होने के बाद महिला की हालत बिगड़ने से मौत हो गई। एंबुलेंस चालक ने सीहोर जिले के श्यामपुर के सामुदायिक स्वस्थ्य केंद्र से सिलेंडर अरेंज कर मरीज की जान बचाने की कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जानकारी के अनुसार सारंगपुर के नजदीक मोहन बड़ोदिया निवासी प्रसूता फरजाना बी को प्रसव पीड़ा के साथ रक्तस्त्राव व ऑक्सीजन का लेवल कम होने पर परिजन उसे शुजालपुर के दुर्गा मंदिर के समीप स्थित आयुष्मान अस्पताल लेकर आए थे।

अस्पताल के आनंद जोशी के अनुसार गंभीर होने व चिकित्सक की उपलब्धता न होने से यहां से महिला को तत्काल रेफर कर दिया गया था, परिजन प्राइवेट एंबुलेंस से महिला को ले गए थे। जानकारी के अनुसार परिजन महिला को पहले उज्जैन ले गए, लेकिन वहां किसी अस्पताल ने भर्त्ती नहीं किया। वापस शुजालपुर लाने के बाद महिला को परिजन जेके हॉस्पिटल में अटैच प्राइवेट एंबुलेंस से भोपाल ले जा रहे थे, तभी रास्ते में ऑक्सीजन का फ्लो कम होने से मरीज को समस्या होने लगी। एंबुलेंस चालक ने तत्काल श्यामपुर के पास सरकारी अस्पताल का पता पूछ कर मदद मांगी।

जिस पर स्वास्थ्य केंद्र से मरीज के लिए तत्काल भरा हुआ ऑक्सीजन सिलेंडर दे दिया गया व चिकित्सकीय मदद भी की गई, लेकिन महिला की जान नहीं बच सकी। इस घटना को लेकर परिजनों ने कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है, लेकिन ऑक्सीजन की कमी से हुई गर्भवती महिला की मौत ने आपदा के समय में सुस्त सरकारी सिस्टम की भूमिका पर सवाल खड़ा कर दिया है। इस बारे में श्यामपुर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉ. महेंद्र सिंह दांगी ने बताया एम्बुलेंस चालक का आईडी प्रूफ लेकर ऑक्सीजन सिलेंडर दिया था, जिसे कुछ समय बाद ही चालक वापस दे गया। महिला को देखा भी था, उसकी पल्स नहीं आ रही थी व पीपुल (आँखों की पुतलिया) डायल्यूट (फैल चुकी) व नान रिएक्टिव थी।

शुजालपुर में निजी एंबुलेंस सेवा संचालित करने वाले नरेंद्र ने बताया कि उनके वाहन से मरीज को रेफर किए जाने पर भोपाल ले जाया जा रहा था तथा महिला का ऑक्सीजन लेवल पहले ही कम था। जिसकी जानकारी परिजनों को देखकर बता दी थी कि उन्हें वेंटिलेटर वाली एंबुलेंस से मरीज को ले जाना चाहिए, लेकिन परिजनों ने आर्थिक परेशानी बताते हुए स्वयं की जिम्मेदारी पर मरीज को सामान्य एंबुलेंस ले जाने की सहमति दी थी। एंबुलेंस में ऑक्सीजन पर्याप्त थी, लेकिन परिजनों ने मरीज को सांस लेने में समस्या होने पर ऑक्सीजन सिलेंडर का वॉल शायद पूरा खोल दिया था, जिससे ऑक्सीजन सिलेंडर अधिकतम 50 मिनट में खत्म हो गया। इसके बाद भी तत्काल ऑक्सीजन की वैकल्पिक व्यवस्था कर मरीज की मदद की गई, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि महिला की मौत हो गई।

इधर परिजनों ने चुप्पी साधी, ससुर बोले- सब अफवाह है

इधर मामले की जांच के लिए भास्कर टीम मृतक महिला फरजाना बी के घर पहुंची। यहां उनके ससुर ने शुजालपुर उज्जैन और फिर शुजालपुर से भोपाल जाने की बात तो बताई, लेकिन ऑक्सीजन खत्म होने, यहां डाक्टरों द्वारा इलाज नहीं करने की सारी बातों को अफवाह बताया। जबकि शुजालपुर से उज्जैन ले जाने वाले एम्बुलेंस स्टाफ और श्यामपुर के डॉक्टर ने दावा किया कि एम्बुलेंस से भोपाल ले जाते समय रास्ते में ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध कराया था।

मां की सांसें टूट रही थीं…फिर भी सांसें दे रही थी…लेकिन सिस्टम से हार गई

मेरी सांसें मां की सांसों से चल रही थीं। लेकिन धीरे-धीरे मां की सांसें टूटने लगी। बहुत तकलीफ हो रही थी मेरी मां को। तड़फ रही थी फिर भी मुझे सांसें दे रही थी। उसने बहुत कोशिश की मुझे बचाने की लेकिन मेरी सांसें टूट गईं। क्योंकि मेरी मां को ये सिस्टम ऑक्सीजन नहीं दे पाया। बहुत उत्सुकता थी, इस दुनिया को देखने की। लेकिन बहुत दुख हुआ। यह जानकर कि ऑक्सीजन के अभाव में सांसों की डोर टूट रही है। मैं तो मां की कोख में ही मर गया। जन्म लेने से पहले ही मैंने जिंदगी और मौत को करीब से देख लिया। यह मेरी मां और मेरी मौत नहीं है।

यह असहाय और लाचार सिस्टम की मौत है। सोचा ठीक ही हुआ, क्या करता इस दुनिया में आकर। आ भी जाता तो ये सिस्टम मुझे मार देता, जहां कोरोना के नाम पर आपदा को अवसर में बदला जा रहा है। ऑक्सीजन नहीं मिलने से मौतें हो रही हैं। जान बचाने वाला इंजेक्शन, जिसकी कीमत कम होनी चाहिए, उसकी चारगुना ज्यादा कीमत वसूली जा रही हैं। अस्पतालों में पर्याप्त बेड नहीं हैं। कोविड पेंशेट इलाज के भटक रहे हैं। प्रशासन मूक दर्शक है। सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी। कोरोना तांडव कर रहा है। इसलिए मेरी मां मर गई। -जिस प्रसूता की मौत हुई, उसके गर्भ में पल रहा बच्चा जो मां के साथ मर गया, शायद यही सोच रहा होगा।

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