उज्जैन में शुरू हुई 118 KM की पंचक्रोशी यात्रा: पहली बार होगी यात्रा की डिजिटल निगरानी, छह प्रमुख स्थानों पर हेड काउंटिंग कैमरे; शिप्रा स्नान कर 27 अप्रैल को होगा यात्रा का समापन!

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:

उज्जैन, जिसे अवंतिका, कुशस्थली और उज्जयिनी जैसे पावन नामों से जाना जाता है, भारतीय सभ्यता की उन दिव्य रेखाओं में से एक है, जहाँ धर्म, दर्शन और अध्यात्म एक साथ बहते हैं। इस नगर की पहचान केवल महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग तक सीमित नहीं है, बल्कि यहाँ की धार्मिक परंपराएँ, संस्कार, और सांस्कृतिक चेतना इसे सनातन धर्म के प्राण जैसा बना देती हैं। इन्हीं पवित्र परंपराओं में से एक है — पंचकोशी यात्रा, जो हर वर्ष वैशाख मास में आस्था, तप और भक्ति का अद्भुत संगम बन जाती है।

पंचकोशी यात्रा’ का शाब्दिक अर्थ है — पाँच कोस की परिक्रमा। उज्जैन में यह यात्रा लगभग 118 किलोमीटर लंबी होती है और इसे पाँच दिवसीय आध्यात्मिक यात्रा के रूप में माना जाता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि, पापों के क्षय और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है। यह यात्रा महाकाल क्षेत्र की परिक्रमा के रूप में जानी जाती है, जिसमें पाँच पवित्र शिव मंदिरों का पूजन, ध्यान और संकल्प का समावेश होता है।

इसी के साथ आपकी जानकारी के लिए बता दें, वैशाख मास की दशमी तिथि से अमावस्या तक चलने वाली उज्जैन की पंचक्रोशी यात्रा आरंभ हो चुकी है और यह 118 किलोमीटर लंबी आस्था और परिक्रमा की यात्रा 27 अप्रैल तक चलेगी। इस यात्रा की शुरुआत उज्जैन के प्राचीन नागचंद्रेश्वर मंदिर से हुई है। श्रद्धालु यहां नारियल अर्पित कर, यात्रा के निर्विघ्न संपन्न होने का संकल्प लेते हैं। इसके पश्चात पंचपर्वों जैसे — पिंगलेश्वर, कायावरोहणेश्वर, बिलकेश्वर (अंबोदिया), दुर्धरेश्वर (जैथल) और नीलकंठेश्वर (उंडासा) — की ओर प्रस्थान करते हैं। ये स्थल न केवल भौगोलिक दिशाओं में बसे हैं, बल्कि उज्जैन के धार्मिक ऊर्जा केंद्र भी हैं। हर एक पड़ाव आत्मचिंतन, मौन, जप, ध्यान और ईश्वर के प्रति समर्पण की अनुभूति कराता है। दरअसल, उज्जैन के चौकोर आकार और केंद्र में स्थित महाकालेश्वर मंदिर के चारों कोनों पर स्थित शिव मंदिरों की परिक्रमा करना इस यात्रा का प्रमुख अंग है। यह यात्रा केवल भौगोलिक दूरी नहीं बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा से जुड़ी हुई है। माना जाता है कि इस पवित्र परिक्रमा से 33 कोटि देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन के समस्त दोषों का शमन होता है।

बता दें, पंचक्रोशी यात्रा का मार्ग भगवान शिव के पांच पवित्र द्वारपाल मंदिरों—पिंगलेश्वर, कायावर्णेश्वर, विल्वकेश्वर, दुर्दरेश्वर और नीलकंठेश्वर से होकर गुजरता है। इसके अलावा श्रद्धालु अंबोदिया, जैथल, उंडासा, राघौपिपल्या, नलवा, शनि मंदिर त्रिवेणी और केडी पैलेस जैसे उपपड़ावों पर भी रुकते हैं। समापन नागचंद्रेश्वर मंदिर पर दर्शन के साथ होता है, जिसके बाद श्रद्धालु पावन शिप्रा नदी में स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं।

हिंदू पंचांग के अनुसार भी पंचक्रोशी यात्रा अत्यंत शुभकारी है। श्रवण नक्षत्र और साध्य योग जैसे विशेष योगों में की गई यह यात्रा जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम बनती है। इस यात्रा में “पंच” यानी पांच का विशेष महत्व है—पांच मंदिर, पांच पड़ाव, पांच तत्त्व, और पंचांग के पांच अंग—जो संपूर्ण जीवन के संतुलन और साधना को दर्शाते हैं।

पंचकोशी यात्रा का प्रत्येक दिन एक साधना है, एक तपस्या है। कोई श्रद्धालु नंगे पाँव चलता है, कोई मौन व्रत में लीन रहता है, कोई नामस्मरण करता है, तो कोई माला जपते हुए भगवान महाकाल की छत्रछाया में अपनी आस्था का दीप जलाता है। रात्रि विश्राम के समय श्रद्धालु स्कूल भवनों, धर्मशालाओं में विश्राम करते हैं और कीर्तन, रामधुन व भजन संध्याओं में भाग लेकर अपनी यात्रा को भक्तिमय बनाते हैं।

इस वर्ष 2025 की यात्रा में विशेष प्रशासनिक और तकनीकी पहल की गई है। हेड काउंटिंग कैमरे, सीसीटीवी निगरानी, और ऑटोमैटिक मैसेजिंग सिस्टम के जरिए हर पड़ाव पर श्रद्धालुओं की संख्या, सुविधा और सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। यह सिंहस्थ 2028 की तैयारी का एक प्रैक्टिकल अभ्यास भी माना जा रहा है।

जी हाँ इस बार प्रशासन ने सीसीटीवी कैमरे और ऑटोमैटिक मैसेजिंग सिस्टम जैसे अत्याधुनिक उपकरणों का भी प्रयोग किया है। जिला पंचायत सीईओ जयति सिंह के अनुसार, यह व्यवस्था पहली बार लागू की गई है। कैमरों के माध्यम से कंट्रोल रूम को लाइव डेटा भेजा जा रहा है, और एक स्थान से सभी पड़ावों पर संदेश प्रसारित किए जा सकते हैं। इससे न सिर्फ श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो रही है, बल्कि भीड़ को समय पर डायवर्ट करने और आकस्मिक स्थितियों में त्वरित निर्णय लेने में भी मदद मिलेगी।

यात्रा मार्ग को प्लास्टिक मुक्त, स्वच्छ और पर्यावरण अनुकूल बनाए रखने के लिए जगह-जगह स्वयंसेवकों और समाजसेवी संगठनों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है। हर पड़ाव पर निःशुल्क भोजन, पेयजल, प्राथमिक चिकित्सा, मोबाइल एम्बुलेंस और विश्राम व्यवस्था यात्रियों को सहज और सुरक्षित अनुभव देती है।

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