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37/84 श्री शिवेश्वर महादेव
37/84 श्री शिवेश्वर महादेव :
काफी समय पहले महाकाल वन में रिपुंजय नामक राजा राज्य करता था। वह प्रजा पालक था व हमेषा भगवान विष्णु के ध्यान में रहता था। उसके राज्य में प्रजा को कोई दुखः नही था। राजा का प्रताप इतना अधिक था कि उसके तेज से पृथ्वी कायम थी ओर कोई शिव का पूजन नही करता था। राजा रिपुंजय के काल में ही शिव ने महाकाल वन में शिवलिंग की स्थापना की थी परंतु उज्जैन में शिवलिंग स्थापित नहीं कर पाए थे। यह सोचकर उन्होने अपने गणेष शिव गण को आज्ञा दी कि वह उज्जैन में शिवलिंग की स्थापना करें। गण ब्राम्हण का रूप धारण कर उज्जैन में आकर रहने लगा ओर प्रजा की विभिन्न व्यधियों को दूर करने लगा। जिनको पुत्र नही थे उन्हे औषधियों से पुत्र प्रदान करने लगा। उसकी ख्याति फेलने लगी पंरतु राजा उसके पास नही पहुंचा। एक दिन राजा रिपुंजय की प्रिय रानी बहुला देवी के पुत्र नही होने पर उसकी एक सखी ब्राम्हण के पास गई ओर उससे रानी को पुत्र प्रदान करने की प्रार्थना की। ब्राम्हण ने कहा कि वह राजा की आज्ञा के बिना महल में नहीं आएगा। इस पर रानी ने अस्वस्थ होने का बहाना किया ओर राजा के साथ ब्राम्हण के पास पहंच गई। राजा ओर रानी ने जैसे ही ब्राम्हण के दर्शन किए ब्राम्हण शिवलिंग में परिवर्तित हो गया। राजा-रानी ने वहां शिवलिंग का पूजन किया। तक महादेव ने कहां कि राजन तुम्हारे यहां पुत्र होगा जो धर्मात्मा, यषस्वी होकर सर्वभौम राजा होगा। गण के शिवलिंग होने के कारण शिवलिंग का नाम शिवेश्वर विख्यात हुआ। मान्यता है कि जो मनुष्य शिवलिंग की पूजन करेगा वह सभी पापों से मुक्त होकर अंतकाल में शिव के गणों में शामिल होगा।