आज उज्‍जैन नगर में बहेगी मदिरा की धारा, यह है उद्देश्‍य

कोरोना महामारी को खत्म करने के लिए शनिवार को नगर पूजा होगी। कलेक्टर आशीष सिंह चौबीस खंबा माता मंदिर में माता महामाया व महालया को मदिरा अर्पित कर पूजन की शुरुआत करेंगे। इसके बाद शासकीय अधिकारी व कोटवारों का दल नगर के विभिन्न कोणों में स्थित 40 से अधिक देवी व भैरव मंदिरों में पूजा के लिए रवाना होगा।

शहर में 27 किलोमीटर लंबे मार्ग पर मदिरा की धार लगाई जाएगी। रात करीब 8 बजे गढ़कालिका क्षेत्र स्थित हांडी फोड़ भैरव मंदिर में नगर पूजा का समापन होगा। खुशहाली, सुख-समृद्घि और रोग निवारण के लिए नगर पूजा की मान्यता है।

प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र की महाअष्टमी पर और बारह वर्ष में एक बार सिंहस्थ महापर्व के पहले नगर पूजा का विधान है। ज्ञात इतिहास में यह पहला अवसर है जब किसी महामारी के निवारण के लिए नगर पूजा की जा रही है। शहर के साधु-संत, धर्मशास्त्र के जानकार व प्रबुद्घजनों के सुझाव पर जिला प्रशासन शनिवार को नगर पूजा करने जा रहा है।

सुबह 7.30 बजे ढोल-ढमाकों के साथ चौबीस खंबा माता मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ नगर पूजा की शुरुआत होगी। मान्यता है उज्जायिनी के राजा सम्राट विक्रमादित्य ने भी अपने शासनकाल में महामारी को खत्म करने के लिए नगर पूजा की थी।

 

बड़बाकुलः अर्पित करते हैं पूड़ी-भजिए

परंपरा अनुसार नगर पूजा में 27 किमी मार्ग पर मदिरा की धार लगाई जाती है। कोटवारों का दल तांबे के पात्र में मदिरा भरकर धार लगाते हुए चलता है। रास्तेभर मदिरा के साथ पूड़ी, भजिए आदि सामग्री भी अर्पित की जाती है। इसे बड़बाकुल कहा जाता है।

मान्यता है इससे अतृप्तों को तृप्ति मिलती है और वे प्रसन्न होकर सुख-समृद्घि व आरोग्यता का आशीर्वाद देते हैं। हरसिद्घि मंदिर में दोपहर 12 बजे शासकीय पूजा शक्तिपीठ हरसिद्घि में देवी की सात्विक पूजा की जाती है। जब भी नगर पूजा होती है कलेक्टर दोपहर 12 बजे हरसिद्घि मंदिर में अलग से पूजन करने जाते हैं। माता हरसिद्घि को सौभाग्य सामग्री, चुनरी तथा नैवेद्य अर्पित किया जाता है।

 

विक्रम कालीन परंपरा आज भी कायम

नगर की सुख, समृद्घि व रोग निवारण के लिए नगर पूजा की परंपरा सम्राट विक्रमादित्य के काल से चली आ रही है। प्रचलित कथाओं में इसका उल्लेख मिलता है। सिंधिया स्टेट ने भी इन्हीं कथानकों के आधार पर नगर पूजा की परंपरा बनाए रखी, जो आज भी कायम है। प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र की महाअष्टमी पर और 12 वर्ष में लगने वाले सिंहस्थ महापर्व से पहले नगर पूजा की जाती है। मान्यता है विधिवत तामसी पूजा से नगर में व्याप्त रोगों का नाश होता है तथा प्रजा सुखी, समृद्घ व प्रसन्न रहती है।

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