9 महिने से आउटसोर्स कर्मियों को वेतन नहीं दिया:विक्रम विश्वविद्यालय में रखे गए करीब डेढ़ दर्जन से अधिक कर्मचारियों का अप्रैल 2022 से वेतन अटका

विक्रम विश्वविद्यालय में रखे गए करीब डेढ़ दर्जन से अधिक कर्मचारियों का अप्रैल 2022 से ही वेतन अटका है। 9 महीने बीतने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने वेतन के लिए फाइल बढ़ाई तो फाइनेंस कंट्रोलर ने नियमों की टीप लगा दी। इसके बाद फाइल ऑडिट में रूकी है। ऐसे में बताया गया कि नियमों के विपरीत रखे गए आउटसोर्स कर्मियों का वेतन नहीं हो सकता है।

विक्रम विद्यालय में अप्रैल 2022 में करीब डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की भर्ती आउटसोर्स के माध्यम से की गई थी। तभी से इन कर्मियों का का वेतन अटका हुआ है। हाल ही में जब विश्वविद्यालय प्रशासन ने वेतन के लिए फाइल बढ़ाई तो फाइनेंस कंट्रोलर ने नियमों की टिप लिख दी इसके बाद ऑडिट विभाग ने फाइल रोक ली है। दरअसल मामले में यह बताया गया है कि विश्वविद्यालय ने नियमों के विपरीत आउटसोर्स पर कर्मचारी रख लिए जबकि नियमों के तहत पहले कंपनियों के लिए टेंडर होना था कंपनी फाइनल होने के बाद कंपनी के माध्यम से आवश्यकतानुसार आउटसोर्स से कर्मचारी रखे जाना थे। हालांकि विश्वविद्यालय ने निविदा निकाल कर कंपनियों के टेंडर बुलाए थे, लेकिन टेंडर की पूरी प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। जिससे किसी भी कंपनी को विश्वविद्यालय में आउटसोर्स कर्मचारी देने के लिए ठेका ही नहीं हुआ। ऐसे में जिम्मेदारों ने नियमों का ध्यान नहीं रखा और सीधे कर्मचारी रखकर आउटसोर्स कर्मचारी बताएं। ऐसे में 9 महिने से कर्मचारियों का वेतन अटका है।

केएसएस कंपनी के गार्ड को भी नहीं मिला वेतन

विक्रम कीर्ति मंदिर में कार्यरत केएसएस कंपनी के सुरक्षा गार्डों को भी विक्रम विश्वविद्यालय से वेतन जारी नहीं हो पा रहा। बताया गया कि पहले विक्रम कीर्ति मंदिर का संचालन श्री महाकालेश्वर मंदिर समिति के पास था। बाद में विक्रम कीर्ति मंदिर का संचालन विश्वविद्यालय के अधीन हो गया। कंपनी ने विश्वविद्यालय के भरोसे पर अपने गार्ड तैनात रखें। विश्वविद्यालय के अधीन केएसएस कंपनी नहीं होने के कारण गार्डों का वेतन भी अटक गया। भुगतान करने के लिए विश्वविद्यालय के जिम्मेदारों ने केएसएस कंपनी के गार्ड के साथ अपने आउटसोर्स कर्मचारियों का भुगतान लेने का प्रयास किया। बताया गया कि कंपनी के माध्यम से करीब 1 लाख 54 हजार का बिल अप्रैल महिने का दिया गया है। जिसमें विश्वविद्यालय में रखे गए कर्मचारियों के नाम भी शामिल है। जानकारों का कहना है कि इस तरह से भुगतान कराने पर कंपनी और विश्वविद्यालय दोनों पर ही आर्थिक अनियमितताएं की कार्रवाई हो सकती है। यही कारण है कि जिम्मेदार भी भुगतान को लेकर हाथ खींच रहे है।

कुलसचिव कौन स्थिति साफ नही

विक्रम विश्वविद्यालय में कुलसचिव के पद को लेकर भी स्थिति साफ नही है। कारण है कि 15 दिन पहले शासन से जारी आदेश में कुलसचिव डॉ. प्रशांत पुराणिक को मूल विभाग एनएसएस समन्वयक के पद पर स्थांनातरित किया। इनके स्थान पर इंदौर से प्रज्जवल खरे को विक्रम में भेजा है। खरे ने अभी तक ज्वाइंन नही किया है। शासन के स्थानांतरण आदेश के बाद से पुराणिक ने वित्तीय मामलों में हस्ताक्षर करना छोड़ दिए है। विश्वविद्यालय में केवल वेतन, विद्युत, पानी के बिल जैसे जरूरी फाइल ही हो रही है। हालांकि डॉ.पुराणिक शासन के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट गए है, जहां 17 जनवरी को सुनवाई है। ऐसे में फाइनेंस कंट्रोलर भी वित्तीय मामलों में फंक फंक कर कदम बढ़ा रहे है। यही स्थिति संस्कृत विश्वविद्यालय की है। यहां पदस्थ कुलसचिव दिलीप सोनी को वापस कॉलेज में भेजा गया है। इनके स्थान पर विक्रम से उप कुलसचिव डॉ. डीके बग्गा को कुलसचिव नियुक्त किया है। विक्रम ने डॉ. बग्गा को रीलिव नही किया। ऐसे में दिलीप सोनी संस्कृत में कार्य कर रहे है। वैसे दिलीप सोनी भी शासन के आदेश के बाद हाईकोर्ट गए है। सोनी के मामले में 13 जनवरी की तारीख लगी है।

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