उज्जैन में ऐतिहासिक खोज: गढ़कालिका मंदिर क्षेत्र की खुदाई में प्राचीन सिक्का मिला, पहली बार किया गया सार्वजनिक; सिक्के पर शिप्रा नदी, महाकाल और नंदी का अंकन

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
सनातन संस्कृति और प्राचीन भारतीय इतिहास के केंद्र उज्जैन से एक सनसनीखेज खोज सामने आई है, जिसने महाकाल की सवारी की परंपरा को हजारों साल पुराना सिद्ध कर दिया है। वर्ष 2024 में गढ़कालिका माता मंदिर क्षेत्र में हुई पुरातात्विक खुदाई के दौरान एक दुर्लभ तांबे का सिक्का मिला, जो उज्जैन के गौरवशाली अतीत की नई कहानी कहता है। मुद्रा शास्त्री और अश्विनी शोध संस्थान के निदेशक डॉ. आरसी ठाकुर के अनुसार, यह सिक्का लगभग 2100 वर्ष पुराना है और इसका संबंध सम्राट विक्रमादित्य के स्वर्णकाल से जोड़ा जा रहा है।
सिक्के पर अंकित है महाकाल की दिव्य छवि
इस सिक्के के आगे के भाग में भगवान महाकाल को एक राजसी मुद्रा में बैठे हुए दिखाया गया है, उनके पास नंदी का भी अंकन है, जो शिव भक्ति का प्रतीक माना जाता है। खास बात यह है कि सिक्के पर शिप्रा नदी को करघनी के रूप में दर्शाया गया है, जो यह दर्शाता है कि उस काल में भी उज्जैन के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाने के लिए प्रतीकों का प्रयोग किया जाता था।
सिक्के के पिछले भाग में उज्जैन की प्राचीन टकसाल का विशेष चिह्न अंकित है, जिसमें चार गोले एक-दूसरे से जुड़े हुए दिखाए गए हैं। यह संकेत करता है कि उज्जैन न केवल एक आध्यात्मिक केंद्र था, बल्कि अपनी समृद्ध अर्थव्यवस्था और व्यापारिक गतिविधियों के लिए भी प्रसिद्ध था।
महाकाल की सवारी: 2100 साल पुरानी परंपरा का प्रमाण
इतिहासकारों और पुरातत्वविदों का मानना है कि यह खोज महाकाल की सवारी की प्राचीनतम पुष्टि करती है। इस सिक्के से प्रमाण मिलता है कि सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल में भी भगवान महाकाल की भव्य सवारी निकलती थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि उज्जैन में हजारों वर्षों से महाकाल की सवारी को राजसी सम्मान प्राप्त था और यह परंपरा निरंतर चलती आ रही है।
सिक्के का ऐतिहासिक महत्व
पुरातत्व विशेषज्ञ सिक्के की बनावट, धातु और वजन के आधार पर इसका काल-निर्धारण करते हैं। इस महत्वपूर्ण खोज को कुछ महीने पहले ही प्रकाश में लाया गया और विशेषज्ञों द्वारा विस्तृत अध्ययन के बाद इसे पहली बार सार्वजनिक किया गया है। डॉ. ठाकुर के अनुसार, इस सिक्के की खोज महाराजा विक्रमादित्य के समय की ऐतिहासिकता को और अधिक स्पष्ट करती है।
यह खोज केवल एक सिक्के तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उज्जैन की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और धर्मपरायणता को भी दर्शाती है। उज्जैन न केवल ज्योतिर्लिंग महाकाल के कारण प्रसिद्ध है, बल्कि यह स्थान भारतीय सभ्यता, खगोल विज्ञान, तंत्र साधना और प्राचीन राजनैतिक गतिविधियों का केंद्र भी रहा है।