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डॉ. मोहन यादव की पहल पर महाकाल सवारी में शामिल होंगे देश के जनजातीय कलाकार, तीसरी सवारी में इस बार दिखेगी करमा, ढोलू कुनिथा और गणगौर की झलक!
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
उज्जैन के श्री महाकालेश्वर भगवान की आगामी तीसरी सवारी इस बार सांस्कृतिक विविधता और लोक परंपराओं की समृद्ध झलक के साथ सजी-संवरी दिखाई देगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मंशा के अनुरूप इस बार भगवान महाकाल की सवारी को और अधिक भव्य और आकर्षक स्वरूप देने के लिए देश की विविध जनजातियों से जुड़े चार प्रमुख लोकनृत्य दलों को सवारी मार्ग में सम्मिलित किया गया है। ये दल सम्पूर्ण मार्ग पर चलते हुए अपनी पारंपरिक नृत्य-शैली से श्रद्धालुओं को भाव-विभोर करेंगे।
इस सांस्कृतिक समागम की अगुवाई कर रहे हैं डिण्डोरी से प्रताप सिंह के नेतृत्व वाला करमा-सैला जनजातीय नृत्य दल। गोंड जनजाति का यह नृत्य कर्म और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक है, जो हर ऋतु में ग्राम्य जीवन में उत्सव और सामूहिकता का संचार करता है। इस नृत्य में गीतों की प्रतियोगिता और समवेत स्वर श्रद्धालुओं को एक गहरे सांस्कृतिक अनुभव से जोड़ते हैं।
दूसरी प्रस्तुति कर्नाटक की जीवंत जनजातीय धड़कन ढोलू कुनिथा की होगी, जिसमें महिला कलाकार पुष्पलता और उनके साथी अपनी पारंपरिक वेशभूषा और उर्जस्वित ढोल की थाप पर नृत्य करते हुए कर्नाटक के लोकजीवन की सजीव तस्वीर प्रस्तुत करेंगे। विशेष रूप से बेल्लारी और शिमोगा जैसे क्षेत्रों में प्रचलित यह नृत्य धार्मिक और मांगलिक आयोजनों का प्रमुख हिस्सा रहा है।
तीसरी प्रस्तुति होगी जबलपुर से आए अहिराई लोकनृत्य दल की, जिसमें यादव समुदाय के युवा पारंपरिक लाठियों, फरसों और वाद्ययंत्रों के साथ श्रीकृष्ण की लीलाओं और ग्रामीण पूजा विधानों का प्रदर्शन करेंगे। यह नृत्य विशेष रूप से कार्तिक मास में गोवर्धन पूजा के अवसर पर किया जाता है और इसमें कृष्ण भक्ति के साथ-साथ सामाजिक एकजुटता का संदेश भी निहित है।
अंतिम दल खंडवा से गणगौर लोकनृत्य प्रस्तुत करेगा, जो निमाड़ अंचल की परंपरा से जुड़ा है। गणगौर पर्व पर महिलाएं पार्वती स्वरूपा रनुबाई की पूजा करती हैं और झेला व झालरिया गीतों के साथ झूमती हैं। इस लोकनृत्य में रथ, थाली, ढोल और आभूषणों से सजी महिलाएं सिर पर गणगौर प्रतिमा लेकर नृत्य करती हैं, जो सांस्कृतिक आस्था का अनुपम प्रतीक है।
इन सभी प्रस्तुतियों से महाकाल की सवारी केवल धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि भारत की विविधतापूर्ण लोकसंस्कृति की गूंज भी बनकर निकलेगी।