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Gaja Lakshmi Vrat: उज्जैन में स्थित एकमात्र मंदिर जहां ऐरावत हाथी पर विराजमान हैं मां लक्ष्मी, दो हजार साल पुरानी है प्रतिमा; महालक्ष्मी पर्व पर 2100 लीटर दूध से किया गया मां गज लक्ष्मी का अभिषेक।
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
हिंदू धर्म में महालक्ष्मी व्रत एक महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है, जो धन की देवी माता लक्ष्मी को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि महालक्ष्मी व्रत करने से जीवन की सभी समस्याएं दूर होती हैं और मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बरसती है। प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से महालक्ष्मी व्रत की शुरुआत होती है और इस दिन से लगातार 16 दिनों तक मां लक्ष्मी की पूजा-आराधना की जाती है, और अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को इसका समापन होता है। मान्यता है कि महालक्ष्मी व्रत करने से धन, समृद्धि और जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
उज्जैन के सर्राफा के पेठ में स्थित मां गज लक्ष्मी के मंदिर में मां लक्ष्मी ऐरावत हाथी पर विराजमान हैं। माना जाता है कि यह मंदिर लगभग 2000 साल पुराना है। इसके अलावा यहां करीब 2000 साल पुरानी भगवान विष्णु की दशावतार प्रतिमा भी विराजित है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक अपने अज्ञातवास के दौरान पांडवों की माता कुंती ने यहां देवी लक्ष्मी की आराधना की थी, जिससे प्रसन्न होकर देवी लक्ष्मी ने पांडवों को उनका राज-पाट वापस दिलवा दिया था। बताया जाता है कि माता गजलक्ष्मी को राजा विक्रमादित्य की राजलक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता था। विक्रमादित्य इन्हें अपनी राजलक्ष्मी मानकर पूजन किया करते थे। मान्यताओं के मुताबिक यहां पर महाभारत के काल से माता गज लक्ष्मी की पूजन-अर्चन हो रही है।
आज महालक्ष्मी व्रत के दिन मां गज लक्ष्मी के मंदिर में विशेष पूजा की गई। इस दौरान मंत्रोच्चार के साथ 2100 लीटर दूध से मां गज लक्ष्मी का अभिषेक किया गया, जिसके बाद माता का श्रृंगार कर महाआरती की गई। बता दें, इस अवसर पर घरों में महिलाएं महालक्ष्मी का पूजन कर मंदिर में भी दूध चढ़ाने पहुंच रही हैं। मान्यता है कि मां लक्ष्मी का पूजन करने से रूठी हुई लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं। वहीं दिवंगत पूर्वज भी परिवार को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।