उज्जैन में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई गई शीतला सप्तमी, माता शीतला के मंदिरों में उमड़ा भक्तों का सैलाब; जानिए पौराणिक परंपरा और धार्मिक महत्व

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:

शीतला सप्तमी का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह पर्व माता शीतला की आराधना के लिए समर्पित है, जिन्हें रोगों से मुक्ति दिलाने और ठंडक प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। यह व्रत होली के सात दिन बाद चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है और इसे बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। सनातन परंपरा में इस दिन माता शीतला को ठंडा एवं बासी भोजन अर्पित किया जाता है, जिससे माता प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आरोग्यता और समृद्धि का वरदान देती हैं।

इसी कड़ी में आपको बता दें, धार्मिक नगरी उज्जैन में शीतला सप्तमी का पर्व श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। इस दिन बड़ी संख्या में महिलाएं सुबह से ही माता शीतला के मंदिरों में दर्शन और पूजन के लिए पहुंचीं। विशेष रूप से गुरुवार रात 12 बजे से कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि लगते ही शीतला सप्तमी का पर्व आरंभ हो गया, और रातभर पूजा-अर्चना का दौर चलता रहा।

शीतला सप्तमी के दिन एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जिसे श्रद्धालु बड़े धैर्य और श्रद्धा के साथ निभाते हैं। इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता, और ठंडे भोजन का भोग शीतला माता को अर्पित किया जाता है। बाद में उसी भोजन को परिवार के अन्य सदस्य ग्रहण करते हैं, ताकि माता की कृपा से घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहे।

दरअसल, शीतला सप्तमी के दिन माता शीतला को बासी भोजन अर्पित किया जाता है, जो इस दिन की मुख्य विशेषता है। यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है और इसे पूरी श्रद्धा के साथ निभाया जाता है। बासी भोजन का यह प्रसाद विशेष रूप से शीतला माता को प्रसन्न करने के लिए अर्पित किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, बासी भोजन लगाने से माता बहुत ही प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। इस दिन बासी भोग को ही ग्रहण करके व्रत का पारण किया जाता है।

धार्मिक मान्यताएँ

हिंदू धर्म के अनुसार, शीतला सप्तमी के दिन विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। इस दिन माता शीतला का पूजन करने से न केवल स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है, बल्कि यह बिमारियों से भी राहत दिलाता है। शीतला माता से आरोग्य का वरदान प्राप्त होता है, जिससे व्यक्ति की सेहत बेहतर रहती है। साथ ही, इस दिन विशेष रूप से घर-घर में स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि की कामना की जाती है।

भोग और पूजन की परंपरा

शीतला सप्तमी के दिन ओलिया, खाजा, चूरमा, मगद, नमक पारे, शक्कर पारे, बेसन चक्की, पुए, पकौड़ी, राबड़ी, बाजरे की रोटी, पूड़ी और सब्जियां जैसी पारंपरिक वस्तुएं बनाकर शीतला माता के चरणों में चढ़ाई जाती हैं। यह भोजन विशेष रूप से इस दिन के लिए तैयार किया जाता है और माता को अर्पित करने के बाद ही परिवार के सदस्य उसे ग्रहण करते हैं।

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