भक्ति में डूबी नगरी : उज्जैन में श्रद्धा और आस्था से मनाया गया ऋषि पंचमी पर्व, शिप्रा में हुआ आंधी-झाड़ा स्नान; सप्तऋषि मंदिरों में उमड़ी महिलाओं की भीड़!

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:

भाद्रपद मास की पंचमी तिथि पर गुरुवार को उज्जैन में श्रद्धा और भक्ति के साथ ऋषि पंचमी पर्व मनाया गया। तड़के से ही शिप्रा नदी के घाटों पर महिलाओं और युवतियों की भीड़ उमड़ पड़ी। विशेषकर रामघाट पर सुबह से ही आस्था का अद्भुत नजारा देखने को मिला, जहां महिलाएं परंपरागत विधि से स्नान कर सप्तऋषियों का पूजन करने पहुंचीं।

शिप्रा नदी में आस्था का स्नान

इस दिन का मुख्य अनुष्ठान शिप्रा नदी में स्नान है। महिलाएं आंधी-झाड़ा (विशेष औषधीय पत्तियों) के साथ स्नान करती हैं, जिसे पवित्र और शुद्धिकरण की प्रक्रिया माना जाता है। इस बार नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण पानी घाट से ऊपर प्लेटफॉर्म तक पहुंच गया था। श्रद्धालुओं ने वहीं बने मंदिर में पूजन-अर्चन किया।

सप्तऋषि मंदिरों में उमड़ी भीड़

शिप्रा स्नान के बाद महिलाएं शहर के प्राचीन सप्तऋषि मंदिरों में पहुंचीं। श्री महाकालेश्वर मंदिर परिसर में स्थित जूना महाकाल मंदिर के पीछे वाले सप्तऋषि मंदिर और खाक चौक स्थित सप्तऋषि मंदिर में दिनभर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही। भक्तों ने सप्तऋषियों—कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ—की विधिवत पूजा की और कथा श्रवण किया।

व्रत और कथा का महत्व

ऋषि पंचमी का व्रत विशेष रूप से महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि यह व्रत मासिक धर्म के दौरान अनजाने में हुई त्रुटियों और दोषों की क्षमा के लिए किया जाता है। महिलाएं उपवास रखकर सप्तऋषियों की पूजा करती हैं और दिनभर व्रत का पालन करती हैं। कथा श्रवण के बाद व्रती महिलाएं केवल मोरधन का भोजन करती हैं।

जीवन में शुद्धता और आशीर्वाद का प्रतीक

श्रद्धालुओं का विश्वास है कि ऋषि पंचमी व्रत से जीवन में शुद्धता आती है और सातों ऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह पर्व आत्मिक शुद्धि, धार्मिक आस्था और ऋषि परंपरा के सम्मान का प्रतीक माना जाता है। उज्जैन जैसे धार्मिक और ऐतिहासिक नगर में इस पर्व का आयोजन न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि परंपरा और संस्कृति की जीवंत झलक भी प्रस्तुत करता है।

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