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बाबा महाकाल के मस्तक पर बहेगी 11 नदियों की पुण्यधारा, आज से 11 कलशों से सतत जलाभिषेक शुरू; 13 अप्रैल से 11 जून तक बाबा महाकाल पर बहेगी निरंतर जलधारा

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
उज्जैन के विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में बढ़ती गर्मी के बीच आज से एक पवित्र और विशेष परंपरा का शुभारंभ हुआ है, जो श्रद्धा और आस्था की पराकाष्ठा को दर्शाती है। 13 अप्रैल से 11 जून तक लगातार 60 दिनों तक बाबा महाकाल के मस्तक पर 11 मिट्टी के कलशों से सतत जलधारा प्रवाहित की जाएगी। इन पवित्र कलशों पर देश की महान और पूजनीय नदियों—गंगा, यमुना, सरस्वती, सिंधु, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी, शरयु, शिप्रा और गण्डकी—के नाम अंकित किए गए हैं, जो दर्शाते हैं कि समस्त नदियों की ऊर्जा और पुण्य धारा बाबा महाकाल की सेवा में समर्पित है।
बता दें, प्रातःकाल होने वाली भस्म आरती के ठीक बाद, सुबह 6 बजे गर्भगृह में भगवान शिव के पवित्र लिंग पर ये 11 मटके सावधानीपूर्वक बांधे जाएंगे। इन मटकों से दिनभर, सुबह 6 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक जल की अविरल धाराएं प्रवाहित होती रहेंगी। मान्यता है कि इस निर्बाध जलधारा से भगवान महाकाल तृप्त होकर अपने भक्तों को सुख, समृद्धि, आरोग्यता और शांति का आशीर्वाद देते हैं।
मंदिर की प्राचीन परंपरा के अनुसार यह विशेष आयोजन हर वर्ष वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से लेकर ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा तक होता है। बाबा के प्रमुख सेवक और महेश पुजारी के अनुसार, इन कलशों को विशेष रूप से बाबा महाकाल के मस्तक के ऊपर स्थापित किया गया है। प्रत्येक कलश से रक्षा सूत्र के माध्यम से एक-एक पवित्र जल की बूंद निरंतर शिवलिंग पर गिरती है, जो गर्मी और हलाहल की उष्णता को शांत करने का प्रतीक मानी जाती है। यह सिर्फ एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि एक दिव्य ऊर्जा का स्रोत है, जिससे भक्तों को मनोकामना पूर्ति, मानसिक शांति और आत्मिक बल की प्राप्ति होती है।
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला के अनुसार, वैशाख मास धर्मशास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। चैत्र पूर्णिमा से प्रारंभ होकर यह मास भगवान विष्णु और भगवान शिव की संयुक्त आराधना का विशेष काल होता है। इस मास में जल चढ़ाना, चंदन अर्पित करना और सुगंधित पुष्पों से उपासना करना विशेष फलदायी माना गया है। जिन जातकों की कुंडली में बृहस्पति और राहु की स्थिति दुर्बल होती है, उन्हें इस पावन मास में शिव-विष्णु की वैदिक विधि से पूजा, अभिषेक और ध्यान करना चाहिए। अगर समय या संसाधन की कमी हो, तो केवल जल और चंदन चढ़ाना भी शिव कृपा पाने के लिए पर्याप्त माना जाता है।