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सम्राट विक्रमादित्य से जुड़ी परंपरा आज भी जीवित: महाअष्टमी पर देवी महामाया-महालया को चढ़ा मदिरा भोग, कलेक्टर-एसपी समेत अधिकारियों ने किया माता का पूजन!
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी पर मंगलवार को प्राचीन परंपरा के अनुसार नगर पूजा की शुरुआत चौबीस खम्बा माता मंदिर से हुई। सुबह से ही भक्तों की भीड़ मंदिर में उमड़ पड़ी। ढोल-नगाड़ों की गूंज और माता की जयकारों के बीच कलेक्टर रौशन सिंह, एसपी प्रदीप शर्मा और अन्य अधिकारी पूजन-अर्चन में शामिल हुए।
माता को मदिरा और बलबाखल का भोग
मंदिर में देवी महामाया और महालया को सोलह श्रृंगार, चुनरी और बलबाखल (काले चने व गेहूं का भोग) अर्पित किया गया। परंपरा के अनुसार माता को मदिरा का भोग भी लगाया गया। इसके बाद शासकीय दल और कोटवारों ने मदिरा से भरी हांडी लेकर यात्रा की शुरुआत की। मान्यता है कि इस मदिरा की धार नगर की रक्षा करती है और नगर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
27 किलोमीटर की पैदल यात्रा
नगर पूजा का दल करीब 27 किलोमीटर तक पैदल चलकर 40 मंदिरों में पूजा करता है। इसमें देवी, भैरव और हनुमान मंदिर शामिल होते हैं। यात्रा के दौरान ढोल बजते रहते हैं और लाल ध्वज लिए भक्त सबसे आगे चलते हैं।
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देवी और भैरव मंदिरों में मदिरा का भोग लगाया जाता है।
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हनुमान मंदिरों में ध्वजा चढ़ाई जाती है।
यह यात्रा सुबह 8 बजे चौबीस खम्बा मंदिर से शुरू होकर रात तक चलती है और अंत में हांडीफोड़ भैरव मंदिर पर समाप्त होती है।
विशेष महत्व और मान्यता
कहा जाता है कि यह परंपरा सम्राट विक्रमादित्य के समय से चली आ रही है। उस दौर में भी नगर की सुख-समृद्धि और आपदाओं से रक्षा की कामना से माता महामाया, महालया और भैरव की पूजा की जाती थी। आज भी वही परंपरा शासन और प्रशासन की ओर से निभाई जाती है।
नगर पूजा का एक और विशेष पक्ष है — नगर में मदिरा की धार लगाना। मान्यता है कि इससे अतृप्त आत्माएं तृप्त होती हैं और नगर को प्राकृतिक आपदाओं व बीमारियों से बचाव मिलता है।
लाल कपड़े का प्रसाद
पूरे नगर पूजा यात्रा में एक ही लाल कपड़े का उपयोग होता है। सभी मंदिरों में पूजन के बाद जब यात्रा हांडीफोड़ भैरव मंदिर पर समाप्त होती है, तब इस कपड़े को छोटे टुकड़ों में काटकर भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। श्रद्धालु इसे घर पर बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिए बांधते हैं।
पूजन सामग्री और तैयारी
नगर पूजा के लिए प्रशासन और राजस्व विभाग हफ्तों पहले तैयारी शुरू कर देते हैं।
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पूजा के लिए 31 बोतल मदिरा आबकारी विभाग से मुफ्त उपलब्ध कराई जाती है।
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बलबाखल बनाने के लिए दो दिन पहले ही काले चने और गेहूं को उबालकर रखा जाता है।
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पूजा का कुल खर्च लगभग 18 हजार रुपए आता है, जिसकी जवाबदारी पटवारी और कोटवार संभालते हैं।
उज्जैन की आस्था से जुड़ी परंपरा
नगर पूजा सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि उज्जैन की पहचान और आस्था का प्रतीक है। यह परंपरा हर साल शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी पर निभाई जाती है।
इस साल भी हजारों श्रद्धालुओं ने नगर पूजा में हिस्सा लेकर माता और भैरव से नगर की शांति, समृद्धि और रक्षा की कामना की।