उज्जैन के किसान ईश्वर सिंह ने जैविक खेती से रचा इतिहास, 2.5 बीघा ज़मीन से सालाना कमा रहे ₹12 लाख: खट्टी छाछ, जीवामृत और राख से फसलें लहलहाईं, बाजार से भी मिले बेहतर दाम!

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:

उज्जैन जिले के शंकरपुर गांव के एक प्रगतिशील किसान ईश्वर सिंह डोडिया ने यह साबित कर दिखाया है कि अगर संकल्प और समझ हो, तो पारंपरिक खेती को भी नए आयाम दिए जा सकते हैं। उन्होंने रासायनिक खेती के दुष्परिणामों को करीब से देखा, समझा और फिर ठान लिया कि अब उनकी जमीन पर सिर्फ जैविक खेती ही होगी। दो ढाई बीघा ज़मीन से शुरू हुई यह यात्रा आज उन्हें सालाना करीब 12 लाख रुपये की आय का जरिया दे रही है।

ईश्वर सिंह ने साल 2013 में जैविक खेती की ओर पहला कदम बढ़ाया। शुरुआती दौर में वह पूरी तरह इस तकनीक से परिचित नहीं थे, लेकिन उन्होंने खुद रिसर्च की, ट्रेनिंग ली और ‘सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती’ के सिद्धांतों को अपनाया। शुरुआत में उन्हें जैविक उत्पादों के लिए बाजार से भी खरीदारी करनी पड़ी, लेकिन समय के साथ उन्होंने गाय आधारित खेती का रास्ता चुना।

उन्होंने पौधों को पोषण देने के लिए खट्टी छाछ का इस्तेमाल शुरू किया। यही नहीं, उन्होंने ‘जीवामृत’ बनाना सीखा, जो गाय के गोबर, गौमूत्र, बेसन और गुड़ से तैयार होता है। इसके अलावा वह गुजरात की गिर गोशाला से लाया गया ‘गोकृपा अमृतम्’ भी इस्तेमाल करते हैं, जिसमें 100 से अधिक फायदेमंद बैक्टीरिया मौजूद होते हैं। दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार ‘वेस्ट-डी कंपोजर’ को भी वह अपनी खेती में शामिल करते हैं।

रासायनिक कीटनाशकों की जगह वह गोबर के उपलों की राख को कीटनाशक के रूप में उपयोग करते हैं। यह न केवल कीटों से बचाव करता है, बल्कि मिट्टी में ऑक्सीजन और रॉक फॉस्फेट की आपूर्ति भी करता है।

ईश्वर सिंह ने अपने खेत की फेंसिंग करवा कर मेड़ों पर फलदार पेड़ जैसे जामफल, नींबू, सीताफल और सहजन लगाए हैं। खेत में वह हल्दी, धनिया, अदरक, गाजर और छांव में उगाई जाने वाली फसलें भी उगाते हैं। टमाटर, गोभी, शिमला मिर्च, प्याज और मिर्च जैसी सब्जियों की खेती भी करते हैं।

उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि जैविक फसलों के लिए उन्हें बाजार के भरोसे नहीं रहना पड़ता। वह खुद अपने उत्पादों की कीमत तय करते हैं और सीधे ग्राहकों से जुड़कर बिक्री करते हैं। यही मॉडल आज अन्य किसानों को भी जैविक खेती की ओर आकर्षित कर रहा है।

ईश्वर सिंह डोडिया का यह नवाचार केवल खेती की दिशा को नहीं, बल्कि सोच को भी बदल रहा है। उनका मानना है कि थोड़ी मेहनत और समझदारी से किसान अपनी जमीन की सेहत भी सुधार सकते हैं और अपनी आय भी कई गुना बढ़ा सकते हैं।

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