शीतला माता पूजन : ठंडे पकवानों से माता को प्रसन्न करने का जतन

उज्जैन | होली पर्व के बाद शीतला सप्तमी का व्रत गुरुवार को महिलाओं द्वारा किया जा रहा है। ठंडे पकवानों का भोग अर्पण कर महिलाओं ने घर की सुख-समृद्धि के लिए कामना की। सुबह 4 बजे से ही शीतला माता के मंदिरों में महिलाओं का हुजूम उमड़ा। माता को भोग अर्पण करने के लिए रात में ही महिलाओं ने भोजन तैयार कर लिया था। परंपरा है कि शीतला माता को ठंडे पकवानों का ही भोग लगाया जाता है। साथ ही इस दिन महिलाएं घरों में चूल्हा भी नहीं जलाती हैं।

पूजन-व्रत का अनूठा विधान
ऋतु परिवर्तन के समय शीतला माता का व्रत और पूजन करने का विधान है। इसी परंपरा के अनुसार चैत्र मास कृष्ण पक्ष में शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। गुरुवार को शीतला सप्तमी और शुक्रवार को शीतला अष्टमी का व्रत है। इस दिन घरों में चूल्हा नहीं जला और एक दिन पूर्व तैयार किए हुए पकवान का शीतला माता को भोग लगाया गया।

विभिन्न तरह के बनते हैं पकवान
शीतला सप्तमी को लेकर माता को भोग लगाने के लिए महिलाओं ने एक दिन पूर्व घरों में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए गए। गुरुवार को शीतला माता का पूजन कर इन व्यंजनों का भोग माता को लगाकर बच्चों के दीर्घायु परिवार की सुख-शांति की कामना की गई। परिवार के सभी सदस्य ने इसी प्रसाद को ठंडे के रूप में ग्रहण करते हैं। ऐसा करने से शीतला देवी खुश होती हैं। इस दिन के बाद से बासी खाना नहीं खाया जाता। यह ऋतु का अंतिम दिन होगा, जब बासी खाना खा सकते हैं। शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी को घरों में चूल्हा भी नहीं जलाया।

मां दुर्गा का स्वरूप
शीतला माता को भगवती दुर्गा का ही स्वरूप माना जाता हैं। चैत्र महीने में जब गर्मी प्रारंभ हो जाती है तो शरीर में अनेक प्रकार के पित्त विकार भी होने लगते हैं। मान्यता है कि शीतला माता का सप्तमी एवं अष्टमी को पूजन करने से ऋतु परिवर्तन के कारण होने वाले रोग जैसे दाहज्वर, पीतज्वर,फोड़े, नेत्र रोग शीतला जनित सारे दोष ठीक हो जाते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में भी पूजन का सिलसिला
महिदपुर, नागदा, खाचरौद, तराना, शाजापुर सहित अन्य नगरों में शीतला माता मंदिरों पर सुबह 3 बजे से ही महिलाओं ने पूजा आरंभ की। परिवार के उत्तम स्वास्थ्य एवं मंगल की कामना लिए प्रति वर्ष यह व्रत किया जाता है।

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