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उज्जैन:कोरोना वायरस संक्रमण का जिला अस्पताल के फ्लू क्लिनिक पर असर
सामान्य दिन की अपेक्षा सिर्फ 25 प्रतिशत मरीज ही पहुंच रहे इलाज कराने
प्रचार-प्रसार से लोगों के मन के डर को दूर करने की जरूरत
उज्जैन:जिला प्रशासन ने कोरोना को लेकर फ्लू क्लिनिक चालू किए हैं लेकिन सर्दी-बुखार-जुकाम के मरीज इन क्लिनिकों पर नहीं पहुंच रहे हैं। जिला अस्पताल की फ्लू क्लिनिक ओपीडी इसका ज्वलंत उदाहरण है। यहां सामान्य दिनों में 80 से 100 सर्दी-जुकाम-बुखार से पीडि़त लोग उपचार करवाने आते थे। इस समय 25 प्रतिशत लोग ही यहां पहुंच रहे हैं। प्रशासन को इसके पीछे के कारण शीघ्र ढंूढना चाहिए। फ्लू ओपीडी पहुंच रहे मरीजों का कहना है हम लोगों से बचते हुए यहां आते हैं और किसी को नहीं बताते हैं कि कहां गए थे? अपनी पहचान छिपाने की कोशिश भी भरसक करते हैं।
ये डर…संदिग्ध मान लिया तो 21 दिन होम क्वारेंटाइन कर देंगे
जिला अस्पताल की फ्लू ओपीडी में अक्षर विश्व ने पड़ताल की। यहां सर्दी-जुकाम-बुखार एवं खांसी का उपचार करवाने आए लोगों से अनौपचारिक चर्चा की। चर्चा में कहा वे डरते हुए यहां उपचार करवाने आए हैं। उनको कोरोना संदिग्ध मान लिया गया तो 21 दिन के लिए होम क्वारेंटाइन कर दिया जाएगा। उन्हे यह बताया गया कि अब तो 9 दिन के लिए ही रहता है, बाद के दिन तो सावधानी के रहते हैं लेकिन उन्होने मानने से इंकार कर दिया। महिलाओं ने कहा कि कोरोना संदिग्ध होने पर भी घर के बाहर होम क्वारेंटाइन का कागज चिपका जाते हैं। उसे देखने के बाद पड़ोसियों के द्वारा हमें हीन भावना से देखा जाता है। पुराने शहर में तो दूधवाला भी दूध देने से कतराता है। रुपए दो तो कहता है कि एक साथ दे देना। दु:ख तकलीफ में रिश्तेदार आनाकानी करते हैं। एक युवक ने बताया कि मुझे सर्दी-खांसी-बुखार होने पर हमारे मोहल्ले में पीठ पीछे कोरोना-कोरोना आवाज देते हैं । मैं यहां पर उपचार करवा रहा हूं,आज डॉक्टर साहब ने फिर बुलवाया था । अब ठीक महसूस कर रहा हूं लेकिन किसी के ओटले पर बेठ जाओ तो उठने के बाद मकान मालिक ओटले पर बाल्टी भरकर पानी डालता है, मानो मैंने उसे गंदा कर दिया। बुखार आना भी पाप हो गया है अब।
यह कहते हैं मेडिकल एक्सपर्ट
जिला हॉस्पिटल की फ्लू ओपीडी के प्रभारी डॉ.अंकित पाटीदार के अनुसार फ्लू क्लिनिक और इसके कांसेप्ट को लेकर आम लोगों के बीच जागरूकता पैदा करना होगी। मार्च में लॉकडाउन से पहले रोज सर्दी-जुकाम-बुखार-खांसी के 80 से 100 मरीज आते थे। अब औसत 20 मरीज ही आ रहे। उन्हे भी चर्चा में मरीज कहते हैं कि हम यहां आए थे उपचार करवाने, मौहल्ले में पता चलेगा तो वे लोग हमसे परहेज करने लगेंगे। यही कारण है कि अनेक बार शंका होती है कि मरीज अपनी पहचान छिपा रहा है। यहां आकर मरीज ठीक होते हैं और फिडबेक भी ठीक आता है। लेकिन प्रचार-प्रसार का मामला गंभीरता से लेना होगा।