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उद्योग विहीन शहर अब चिकित्सा विहीन कहलाने की राह पर
जनप्रतिनिधियों से सिर्फ एक ही सवाल-आपने हमें 70 वर्षों में क्या दिया?
मंगल गृह की उत्पत्ति जिस भूमि से हुई हो वहीं चिकित्सा व्यवस्था में चारों ओर आज अमंगल ही अमंगल है। उज्जैन की स्वास्थ्य व्यवस्था देख कर यहां की जनता के लिए आज दु:ख होता है और 70 सालों से यहां से अपनी सत्ता की रोटियां सेंक रहे जनप्रतिनिधियों पर गुस्सा आता है।
स्थानीय नेतृत्व की वर्षों से चली आ रही उदासीनता ने आज इस शहर की ऐसी दुर्दशा की है। हमारा शहर उद्योग विहीन तो है ही, कोरोना की इस जंग ने अब स्वास्थ्य व्यवस्था की भी पोल खोलकर रख दी है। कोरोना संक्रमण से लडऩे के लिए 7 लाख की आबादी वाले इस शहर के पास एक अस्पताल या एक ऐसा मेडिकल कॉलेज तक नहीं है जहां पर शहर के संक्रमित लोगों का इलाज हो सके। पूरी दुनिया में कोरोना से मौत का आंकड़ा संक्रमितों के अनुपात में 6 प्रतिशत के आसपास है, भारत में यही आंकड़ा 3.25 प्रतिशत है, मप्र में 5.45 प्रतिशत है परंतु उज्जैन में मौत का यही आंकड़ा 21 प्रतिशत पर है। मतलब देश की औसत मृत्यु दर से 550 प्रतिशत अधिक।
क्या कोरोना ने उज्जैन पहुंचकर विशेष वरदान या शक्ति पा ली है कि उज्जैन की भूमि में वह अजर अमर हो जाएगा? यह वरदान कोरोना को दिया है 70 वर्षों से राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर हमारे शहर का प्रतिनिधित्व कर रहे हमारे ही द्वारा चुने हुए जनप्रतिनिधियों ने, कि वे आज तक यहां ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था ही नहीं जुटा पाए जिससे की यहां के लोगों को अन्य शहर में जाकर उपचार के लिए धक्के ना खाने पड़े हों।
एक सरकारी मेडिकल कॉलेज की वर्षों से चली आ रही मांग आज तक सिर्फ पार्टियों के घोषणा पत्र की ही शोभा बढ़ा रही। ना जाने वह कौन सा चुनाव होगा जिसमें यह प्रलोभन किसी भी पार्टी के घोषणा पत्र का हिस्सा नहीं होगा। आरोप प्रत्यारोपों का दौर पहले भी था, अब भी है और आगे भी जारी रहेगा। भले ही अभी कोरोना से मृत लोगों की चिताओं पर सत्ता की रोटियां ना सेंकी जा रही हो पर आने वाले चुनावों में पुन: यह जिन्न चिराग से बाहर निकलेगा।
आज जो जानकारी सामने आई उसमें कहा जा रहा है कि यहां के पॉजीटिव मरीजों का इलाज इंदौर ले जाकर करेंगे। आखिर क्यूं हम स्वयं को इतने वर्षों में सक्षम नहीं बना पाए कि अपने शहर के लोगों को यह सुविधा भी ना दे सके। शहर के जनप्रतिनिधि ने इंदौर के अस्पताल में उज्जैन के लिए 100 बेड की व्यवस्था करने की बात कह दी, उज्जैन के लोगों को यह बात भी बिल्कुल नागवार गुजरी। ऐसे ही एक और जनप्रतिनिधि घर से बैठकर भोजन के पैकेट और राशन बांटने में लगे हैं, सरकारी राशन से अपना वोट बैंक पक्का करने का इससे अच्छा कोई साधन हो भी नहीं सकता। शहर के जनप्रतिनिधियों पर सोशल मीडिया में उन्ही की पार्टी के लोग नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं। यह समय जनप्रतिनिधियों के लिए आत्मचिंतन और आत्मावलोकन का है कि इन सभी और इनके पूर्ववर्तियों ने इस शहर को इतने वर्षों में क्या दिया?