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औपचारिक प्रस्ताव:उज्जैन में सरकारी मेडिकल कॉलेज के लिए 8 बार घोषणा, लेकिन जमीन ही फाइनल नहीं
1965 में यानी 58 साल पहले पहली बार आंदोलन। पांच दिन लगातार उज्जैन बंद। 1994 में पहली बार सरकारी चिट्ठी। फिर 2015 में पहली बार औपचारिक प्रस्ताव। 2021 में सीएम शिवराज की घोषणा। 22 में कैबिनेट की स्वीकृति। इस बीच 8 बार लोकल राजनेताओं द्वारा घोषणा और भारी जश्न।
इतने लंबे समय तक सरकार खुद प्रयास में जुटी रही, लेकिन हम उज्जैन में सरकारी मेडिकल कॉलेज को उसकी जमीन तक नहीं दे पा रहे। 10 प्रयास के बाद इंजीनियरिंग कॉलेज की जमीन पर मेडिकल कॉलेज बनाने पर आम सहमति बनी, लेकिन अभी उसमें दो पेंच फंसे हैं। पहला इंजीनियरिंग कॉलेज के ही कई भवन व लैब वहां बनाए जाने हैं। इनके लिए पीडब्ल्यूडी को निर्माण एजेंसी बनाकर काम का ऑर्डर हो गया है। दूसरा इसी जमीन से मास्टर प्लान में एक रोड भी प्रस्तावित है।
इस कारण दो माह पहले इंजीनियरिंग कॉलेज की जमीन पर सहमति के बावजूद इसका प्रस्ताव भोपाल नहीं गया है। चिकित्सा शिक्षा विभाग भोपाल के अफसरों ने कहा उज्जैन जिला प्रशासन को जमीन तलाशने को कहा है। अभी जमीन नहीं मिली है। उज्जैन में सबसे बड़े चुनावी मुद्दे पर अब मुख्यमंत्री से ही उम्मीद है। कहा जा रहा है अगस्त के पहले हफ्ते में मुख्यमंत्री इस जमीन पर मेडिकल कॉलेज के लिए भूमिपूजन करेंगे। चुनाव सिर पर है तो रास्ते निकाल लिए गए हैं।
पूरी कहानी राजनीतिक है। उत्तर और दक्षिण की स्पर्धा। संसद से विधानसभा की लड़ाई। यह कहानी बताती है- कैसे राजनीतिक लड़ाई से किसी शहर का विकास प्रभावित होता है। 58 साल का इंतजार लेकिन जमीन ही फाइनल नहीं। अब भी भूमिपूजन तो हाेगा लेकिन यदि मास्टर प्लान और तकनीकी शिक्षा विभाग से सहमति नहीं बन पाई तो यह सिर्फ भूमिपूजन तक ही सीमित रह जाएगा।
10 बार जमीन तलाशी, लोकल राजनीति आड़े आई
1. सख्याराजे प्रसूति गृह की खाली बिल्डिंग।
2. आगर रोड स्थित जिनिंग फैक्टरी की जमीन।
3. हरिफाटक क्षेत्र में कवेलू कारखाने की जमीन।
4. आगर रोड स्थित सामाजिक न्याय परिसर मैदान।
5. तराना-कानीपुरा रोड स्थित जमीन।
6. इंदौर रोड प्रशांति कॉलेज। के पास
7. धन्वंतरि आयुर्वेदिक कॉलेज के पास।
8. श्रीराम जानकी मंदिर की सरकारी जमीन।
9. मालनवासा, इंदौर रोड पर और अब
10. इंजीनियरिंग कॉलेज की जमीन।
हर बार जमीन तलाशते रहे अफसर। पीछे से इस जमीन पर आपत्ति करते राजनेता। सामने कहते कि हम सब सहमत हैं। हर बार की यही कहानी। कुल मिलाकर नतीजा यह हुआ कि उज्जैन से बहुत छोटे शहरों में भी मेडिकल कॉलेज बनते गए लेकिन उज्जैन का हक उससे 25 एकड़ जमीन दूर रहा। नतीजा देखिए नीमच, राजगढ़, श्योपुर, शिवपुरी, मंडला व सिंगरोली में 2025 में मेडिकल कॉलेज की सीटों के लिए सरकार की ओर से आवेदन किए जा रहे हैं जबकि इन्हीं के आसपास कॉलेज की घोषणा के बावजूद उज्जैन में कुछ भी नहीं हुआ।
19 मई 2021 को तो उज्जैन के साथ सीहोर के बुधनी में भी मेडिकल कॉलेज की घोषणा की गई लेकिन बुधनी तक हमसे आगे निकल गया। अब एक बार फिर 6 और नए मेडिकल कॉलेज की घोषणा मुख्यमंत्री कर चुके हैं। हर बार मुद्दा सिर्फ चर्चा का विषय बनता है। लोकल राजनेताओं के सोशल मीडिया पेज ही तलाशेंगे तो कम से आठ बार जल्द ही मेडिकल कॉलेज मंजूर हो चुका है।
और ये सरकारी जवाब- जो उम्मीद बंधाता है
“इंजीनियरिंग कॉलेज के पास 250 एकड़ जमीन है। इसमें से सिर्फ 25 एकड़ जमीन मेडिकल कॉलेज के लिए लेने का प्रस्ताव हमने संभागायुक्त को भेज दिया है। नए प्रावधानों के मुताबिक मेडिकल कॉलेज जिला अस्पताल से आठ किलोमीटर के भीतर होना चाहिए। इसलिए इतने ही एरिया में जमीन तलाशी जानी थी। इंजीनियरिंग कॉलेज के पास काफी जमीन है। उनके निर्माण भी आसानी से हो सकेंगे।”