कोरोना की दूसरी लहर का डेथ ऑडिट:कोविड मरीजों में ब्लड क्लोटिंग, हार्ट अटैक और ब्रेन हेमरेज

कोरोना की दूसरी लहर में वायरस उन मरीजों के ब्लड पर भी अटैक कर रहा है जो ओल्ड एज, गंभीर बीमार और हार्ट तथा डायबिटीज या ब्लड प्रेशर के मरीज हैं। ऐसे मरीजों में खून का थक्का ब्लड क्लोटिंग पाया है, जिससे मरीजों को हार्ट अटैक व पैरालिसिस हो रहा है। करीब 35 से 40% ऐसे मरीजों की मौत भी हुई है। दूसरी लहर में मार्च से अप्रैल तक संक्रमण के तेजी से बढ़ने के साथ ही मरीजों में नए लक्षण के रूप में खून का थक्का ब्लड क्लॉट भी पाया गया है।

पैरालिसिस विशेषज्ञों ने अपने अध्ययन में पाया है कि वायरस के कारण खून में डी-डायमर प्रोटीन बन रहा है और उससे खून गाढ़ा होकर थक्के बना रहा है। जिससे बाद में मरीजों को हार्ट अटैक व पैरालिसिस हो रहा है। कोविड हॉस्पिटल में भर्ती करीब 50 से 60 प्रतिशत तक मरीज ऐसे पाए गए, जिनमें खून का थक्का जमना पाया गया।

जिसे डीप वेन थ्रेम्बोसिस कहा जाता है। ये वे मरीज हैं जिनकी उम्र 50 साल या उससे अधिक है और उन्हें डायबिटीज या ब्लड प्रेशर है। हालांकि युवा मरीजों में यह समस्या नहीं देखी गई। कोविड विशेषज्ञ डॉ. सोनाली अग्रवाल का कहना है दूसरी लहर में मरीजों में ब्लड क्लोटिंग के मामले ज्यादा देखने में आए हैं। ऐसे में लाइन ऑफ ट्रीटमेंट के तहत मरीज के खून को पतला करने के लिए दवाइयां दी जाती है।

कोरोना के नए अटैक के कारण ही उज्जैन में मौतें बढ़ी थीं, ज्यादा असर दिल के मरीजों पर

1.5 से 4 लाख प्रतिलीटर होती है सामान्यत: प्लेटलेट्स की संख्या

…और इससे कम होने पर थ्रोम्बोसाइटोपीनिया होता है

कोविड-19 के नोडल अधिकारी डॉ. एचपी सोनानिया ने बताया मरीजों में खून का थक्का जमने से वायरस मरीजों की एंडोथिलियम कोशिकाओं को नष्ट कर देता है, जो ऊतकों के अंदर-बाहर द्रव्यों के प्रवाह को नियंत्रित करती है। वायरस के कारण ऊतकों को नुकसान होने से उनमें सूजन लाने वाले अणु पैदा होते हैं और प्रतिरोध प्रणाली तंत्र खून का थक्का जमाने की प्रक्रिया शुरू कर देता है। खून का थक्का दिल के मरीजों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है।

  • अब तक कोविड से 168 मरीजों की मौत हुई है, जिनमें से 35 से 40 प्रतिशत तक मरीज खून का थक्का जमने के बाद हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज व लंग्स फैलियर आदि से मौत के शिकार हुए

ये बड़ा खतरा हार्ट के आसपास थक्का
दिल के आसपास थक्का जमने से डायबिटीज, हाइपरटेंशन, मोटापा व अन्य बीमारियों से हार्ट अटैक का खतरा रहता है। थक्का अगर दिमाग में जमता है तो स्ट्रोक और ऑक्सीजन की कमी होती है। पैरों की नसों में लिंब स्कीमिया तथा शरीर के अलग-अलग हिस्सों में थक्का बनने से आंतों के अंदर खून पहुंचाने वाली नसों, दिमाग के खून पहुंचाने वाली और वहां से खून को लाने वाली नसों को प्रभावित कर देता है। विशेषज्ञों का मानना है हॉस्पिटल पहुंचने वाले 50 से 60% मरीजों में खून का थक्का जमने की समस्या देखी गई है।

थ्रॉबोसिस टुकड़े होकर फेफड़ों तक पहुंचा
वायरस की वजह से डीप वेन थ्रॉबोसिस के मामले भी बढ़ गए हैं। जो कि आमतौर पर पैर में पाए जाते हैं लेकिन इनके टुकड़े होकर शरीर के ऊपरी हिस्से फेफड़ों में पहुंचने लगते हैं तो इनसे रक्त वाहिकाएं अवरूद्ध हो जाती है। अध्ययनों में यह भी पाया गया कि वायरस से खून और ज्यादा चिपचिपा हो जाता है जिससे खून के थक्के बन जाते हैं। रसायनों का स्त्राव होने से भी खून के थक्के जम रहे हैं। जिससे स्ट्रोक्स व हार्ट अटैक होने से मरीजों की मौत हो रही है।

कोमा में भी चले गए ब्लड क्लोटिंग के 50 से

  • 60 % मरीज पाए गए। इससे हार्ट अटैक व पैरालिसिस हुए हैं। मरीज कोमा में भी चले जाते हैं, हालांकि खून का पतला करने के लिए हिपेरिन दी जाती है। – डॉ. सुधाकर वैद्य, नोडल अधिकारी कोविड, मेडिकल कॉलेज

निजी अस्पतालों से रैफर 8 गंभीर मरीजों की माधवनगर में मौत

रैफरल कमेटी की अनुशंसा के बगैर ही रैफर किए जा रहे मरीज, प्रभारी बोले- गंभीर मरीजों को भेजा जा रहा

प्राइवेट अस्पतालों से कोविड हॉस्पिटल माधवनगर भेजे गए 8 मरीजों की मौत हो गई। इन्हें गंभीर हालत में ही यहां रैफर किया गया था। ऐसे में उन्हें नहीं बचाया जा सका। चेरिटेबल हॉस्पिटल से रैफर की गई महिला ने तो 20 मिनट में ही दम तोड़ दिया। मंगलवार रात कुल आठ मरीजों की मौत हुई है।

प्राइवेट अस्पतालों से मरीजों को रैफर करने के लिए रैफरल कमेटी बनी हुई है, उसके बाद भी मरीज की गंभीर हालत होते ही या परिवार के लोगों के पास आगे के इलाज के लिए रुपए नहीं होने से प्राइवेट अस्पताल संचालक मरीजों को सरकारी कोविड अस्पताल या सेंटर में रैफर कर देते हैं। ऐसे में माधवनगर अस्पताल की मृत्यु दर बढ़ती जा रही है।

माधवनगर अस्पताल के प्रभारी डॉ. विक्रम रघुवंशी का कहना है कि प्राइवेट अस्पतालों से उन मरीजों को रैफर किया जा रहा है, जिनकी हालत गंभीर हो जाती है, अंतिम समय में मरीजों को यहां भेजा जाता है। ऐसे में मरीज को केयर दे पाना मुश्किल होता है। ऐसे मरीजों को वेंटीलेटर पर रखना पड़ता है, उनके रिकवरी होने की संभावना बहुत कम रहती है और उनकी मौत हो जाती है।

कलेक्टर आशीष सिंह व सीएमएचओ डॉ. महावीर खंडेलवाल को इस बारे में अवगत कराया जाएगा। रैफरल कमेटी की अनुशंसा के बगैर मरीजों को रैफर करने पर रोक लगना चाहिए। पहले से यहां भर्ती मरीज रिकवर हो रहे हैं। बुधवार को 17 मरीजों के स्वस्थ होने पर उन्हें डिस्चार्ज किया गया।

महिदपुर के गांव चिड़ी रावदिया की 80 साल की महिला, जो कि पिछले 10 दिन से यहां भर्ती थी व इंदौर के बॉम्बे हॉस्पिटल से भेजे गए निर्भय सिंह आंजना उम्र 45 साल निवासी पंचेड़ को डिस्चार्ज किया है। उन्होंने बताया कि प्राइवेट अस्पतालों से भेजे गए 8 मरीजों की मौत हुई है। माधवनगर में 132 मरीज भर्ती हैं, जिनका इलाज जारी है।

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