गंगा की मिट्टी से निखरा मां का स्वरूप

मां शक्ति की आराधना के पर्व शारदीय नवरात्रि की शुरुआत १ अक्टूबर से होगी। देवी मंदिरों में भी उत्सव को भव्यता देने के लिए तैयारियां शुरू हो गई हैं। इस बार नवरात्रि दस दिनों की होने से भक्तों में उत्साह है।बंगाली कॉलोनी स्थित काली बाड़ी में कोलकाता के कलाकार मां जगदम्बा की मूर्तियों को बड़ी बारीकी से संवार रहे हैं। यहां के कलाकारों की खासियत यह है कि वे पीओपी से नहीं मिट्टी से मूर्तियां बनाते हैं। मां की मूर्तियां बनाने के लिए मिट्टी खास कोलकाता से मंगवाई जाती है। गंगा की इस मिट्टी पर जब इन कलाकारों के हाथ मूर्तियों को गढ़ते हैं तो देखने वाले प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाते।

वर्ष १९९१ में कोलकाता से उज्जैन आए ऐसे ही कलाकार ऋषिकेश पाल ने बताया मूर्तियां बनाने की कला उन्हें विरासत में मिली है जिसे वे आज भी संजो रहे हैं। उन्होंने बताया मूर्तियां बनाने में पवित्रता का पूरा ध्यान रखा जाता है। इसके लिए पवित्र गंगा नदी की मिट्टी का उपयोग किया जाता है और उसमें गंगा जल मिलाया जाता है। मूर्ति के अंदर घास का इस्तेमाल कर ऊपर से मिट्टी का लेप लगाकर मनमोहक स्वरूप दिया जाता है। ऋषिकेश के साथ काम कर रहे अन्य कलाकार भी इसी विरासत को संजो रहे हैं।

कोलकाता से मिट्टी व बैतूल से आई घास
मूर्ति बनाने का सिलसिला करीब चार माह से शुरू हो जाता है और उससे भी पहले इसकी तैयारियां की जाती हैं। ट्रांसपोर्ट के माध्यम से कोलकाता से गंगा की मिट्टी और गंगा जल मंगवाया जाता है। मूर्तियां बनाने में करीब ६० बोरी मिट्टी लगती है। प्रत्येक बोरी का वजन २२ से २५ किलो होता है। कोलकाता से मिट्टी आने में करीब ८-१० दिन का समय लगता है। मूर्तियों के अंदर उपयोग होने वाली घास बैतूल से मंगवाई जाती है। यह चावल की घास होती है।

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