गंगा की मिट्टी से बप्पा को दिया मनमोहक रूप

प्रथम  पूज्य भगवान श्रीगणेश के जन्मोत्सव (गणेश चतुर्थी) के पर्व में दो दिन शेष हैं। ५ सितंबर से गणेशोत्सव की शुरुआत होगी। घर, दुकानों, पांडालों में भगवान श्रीगणेश विराजेंगे। दस दिनों तक उत्सव की धूम रहेगी। मंदिरों तथा सार्वजनिक पांडालों में गणेश चतुर्थी की तैयारियां जोरशोर से चल रही हंै। शहर में करीब २०० स्थानों पर गणेश प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है। कलाकार प्रतिमाओं को अंतिम रूप दे रहे हैं। प्रतिमाओं के बुक होने का काम शुरू हो गया है।

हम बात कर रहे हैं कोलकाता के ऐसे कलाकार की जो सिर्फ मिट्टी की प्रतिमाएं बनाकर दूसरों के लिए प्रेरणा बने। जब उनकी अंगुलियां मिट्टी को प्रतिमाओं का स्वरूप देने के उठती हैं तो देखने वाले उनकी कला की प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाते। कोलकाता के ऋषिकेश पाल वर्ष १९९१ में उज्जैन आए। बचपन से वे भगवान गणेश, मां दुर्गा की प्रतिमाएं बनाते आ रहे हैं।

विरासत में मिले इस हुनर को वे आज भी बखूबी अंजाम दे रहे हैं। सिंधी कॉलोनी के समीप स्थित बंगाली कॉलोनी में रहने वाले ऋषिकेश बताते हैं कि प्रतिमा बनाने में वे कोलकाता की गंगा मिट्टी का उपयोग करते हैं और उसे शुद्ध करने के लिए गंगा जल मिलाया जाता है। प्रतिमा के अंदर घास रहती है और बाहर से मिट्टी का उपयोग कर उसे मनमोहक रूप दिया जाता है। प्रतिमाओं में शुद्धता का पूरा ख्याल रखा जाता है। अब ऋषिकेश के पुत्र एवं वहां कार्य कर रहे अन्य कलाकार भी इसी विरासत को संजो रहे हैं।

३ से १४ फीट की मूर्तियां
बंगाली कॉलोनी में अभी प्रतिमाओं के बनने का कार्य अंतिम चरण में हैं। यहां ३ फीट से १४ फीट की भगवान गणेश की प्रतिमाएं बनाई गई हैं। अधिकांश प्रतिमाएं बन चुकी हैं और कुछ प्रतिमाओं को कलाकार अंतिम रूप देने में जुटे हैं। ऋषिकेश बताते हैं वे प्लास्टर ऑफ पेरिस से प्रतिमाएं नहीं बनाते क्योंकि इससे पर्यावरण और जल दोनों प्रदूषित होते हैं। प्रतिमाएं बनाने वाले कोलकाता के सभी कलाकार गंगा मिट्टी व गंगा जल का ही उपयोग करते हैं।

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