मतदान से पूर्व रोचक हुआ उज्जैन दक्षिण का त्रिकोणीय चुनावी मुकाबला…

उज्जैन। कांग्रेस ने उज्जैन दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से राजेन्द्र वशिष्ठ को प्रत्याशी बनाया है। जिन्होंने चुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत लगा दी है लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जयसिंह दरबार कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
वर्ष 2008 में राजेन्द्र वशिष्ठ और जयसिंह दरबार ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में इसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। जिसके चलते कांग्रेस के प्रत्याशी योगेश शर्मा की जमानत जब्त हो गई थी। वर्ष 2013 में कांग्रेस ने जयसिंह दरबार को प्रत्याशी बनाया लेकिन भाजपा ने बाजी मारी। इस बार कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में कई नेता काम तो कर रहे हैं लेकिन उनमें से कई नेता ऐसे है जो कि अंदरुनी तौर पर जयसिंह दरबार के समर्थन में है।

ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी को भितरघात के कारण नुकसान हो सकता है। ज्यादातर कांग्रेसी मानते है कि अभी तक उज्जैन दक्षिण में कांग्रेस प्रत्याशी की हार का कारण भितरघात रहा है और कांग्रेस प्रत्याशियों के साथ भितरघात किन-किन ने की है यह किसी से छिपा नहीं है। कुछ नेता तो चाहते हैं कि वशिष्ठ को भोपाल नहीं पहुंचना चाहिए।

इसलिए कुछ कांग्रेसियों ने अपने स्तर पर रणनीति भी तैयार कर ली है और उसके तहत काम कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के तत्कालीन सांसद प्रेमचंद गुड्डू ने राजेन्द्र वशिष्ठ और उनके परिवार से जुड़ी एमआईटी के अनियमितताओं की शिकायत की शिकायत दिल्ली तक की थी। जिसके चलते राजेन्द्र वशिष्ठ, प्रेमचंद गुड्डू के गुट में शामिल हो गए लेकिन बाद में दूरियां बढ़ा ली।

एक स्वर में किया था विरोध…

तीन माह पहले इंदौर रोड स्थित एक होटल में दावेदारों की बैठक रखी गई थी। जिसमें दावेदारी करने वाले कई नेता मौजूद थे। उस दौरान सभी ने वशिष्ठ का विरोध किया था और यहां तक कहा कि पार्टी हम में से किसी को भी टिकट देगी तो हम सब एकजुट होकर काम करेंगे लेकिन वशिष्ठ को टिकट नहीं मिलना चाहिए। लेकिन जोड़-तोड़ करके वशिष्ठ टिकट लाने में कामयाब हो गए।

….और इधर राज्यपाल के रक्षासूत्र को बनाया प्रचार सामग्री :

दक्षिण विधानसभा के बीजेपी प्रत्याशी मोहन यादव का एक ब्रोशर इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। इस ब्रोशर में अंदर के दूसरे पृष्ठ पर ही राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से दक्षिण के प्रत्याशी यादव को रक्षासूत्र बंधाते हुए दर्शाया गया है। लोगों का यह प्रश्न है कि क्या किसी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति का प्रचार सामग्री में उल्लेख किया जा सकता है या फिर यह आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में आयेगा।

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