- भस्म आरती: राजा स्वरूप में सजे बाबा महाकाल, धारण की शेषनाग का रजत मुकुट, रजत की मुण्डमाल और रुद्राक्ष की माला
- भगवान महाकाल को दान में आई अनोखी भेंट! भक्त ने गुप्त दान में चढ़ाई अमेरिकी डॉलर की माला, तीन फीट लंबी माला में है 200 से अधिक अमेरिकन डॉलर के नोट
- भस्म आरती: राजा स्वरूप में सजे बाबा महाकाल, मस्तक पर हीरा जड़ित त्रिपुण्ड, त्रिनेत्र और चंद्र के साथ भांग-चन्दन किया गया अर्पित
- श्री महाकालेश्वर मंदिर में एंट्री का हाईटेक सिस्टम हुआ लागू, RFID बैंड बांधकर ही श्रद्धालुओं को भस्म आरती में मिलेगा प्रवेश
- कार्तिक पूर्णिमा आज: उज्जैन में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, माँ क्षिप्रा में स्नान के साथ करते हैं सिद्धवट पर पिंडदान
महाकाल मंदिर में फिर आकार लेगा 1000 साल पुराना टेंपल: खुदाई में मिले थे परमारकालीन अवशेष, 37 फीट ऊंचा भव्य मंदिर बनेगा
उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर परिसर में खुदाई के दौरान मिले एक हजार साल पुराने मंदिर के अवशेषों से फिर मंदिर बनाया जाएगा। इसकी ऊंचाई 37 फीट होगी। इसमें 65 लाख रुपए की लागत आएगी। एक साल के अंदर यह बनकर तैयार हो जाएगा। पूरा काम पुरातत्व विशेषज्ञों की देखरेख में कराया जाएगा। इसका काम जल्द ही शुरू होने वाला है।
मई 2020 में महाकाल मंदिर विस्तारीकरण के पहले चरण की खुदाई चल रही थी। मंदिर के अगले हिस्से में 25 से 30 फीट खुदाई के बाद प्राचीन मंदिर का ढांचा दिखा था। यहां आधार भाग, प्राचीन शिवलिंग, नंदी, गणेश, मां चामुंडा और शार्दुल की मूर्तियां मिली थीं। इसके बाद खुदाई का काम रोक दिया गया था। पुरातत्व विशेषज्ञों ने इसे परमारकालीन बताया था।
फिर एक्सपर्ट्स की निगरानी में हुई थी खुदाई
पुरातत्व विभाग के तत्कालीन आयुक्त शिव शेखर शुक्ला ने पुरातत्वविद् डाॅ. रमेश यादव के नेतृत्व में चार सदस्यीय दल को वहां पर भेजा था। टीम को लीड कर रहे पुरातत्व अधिकारी डॉ. रमेश यादव ने कहा था कि 11वीं-12वीं शताब्दी का मंदिर नीचे दबा है, जो कि उत्तर वाले भाग में है। आयुक्त ने मंदिर के गौरवशाली इतिहास को संरक्षित करने के लिए पुरातत्व विभाग की निगरानी में खुदाई का निर्णय लिया था। दल ने विभाग को इसकी रिपोर्ट भी सौंपी थी।
सभी हिस्सों को जोड़कर बनाएंगे मंदिर
एक्सपर्ट्स की देखरेख में यहां मिले स्तंभ, कुंभ भाग, आमलक आदि के अवशेषों का वर्गीकरण कर नंबरिंग की है, जिससे निर्माण के दौरान जो भाग जहां का है, वहीं स्थापित किया जा सके। पुरातत्व विभाग अब आधार भाग से शिखर तक के हिस्सों को जोड़कर प्राचीन स्वरूप में ही मंदिर निर्माण का कार्य शुरू करेगा।
पुरातत्वविद् डॉ. रमेश यादव ने बताया कि बारिश का सीजन खत्म होने के बाद मंदिर के आधार स्तंभ को दोबारा खोला जाएगा। इसके बाद नींव से मंदिर निर्माण का काम शुरू किया जाएगा। मंदिर निर्माण में खुदाई में निकले पत्थरों का ही उपयोग किया जाएगा। मंदिर की नींव तक ले जाकर स्ट्रक्चर की सफाई कर पुन: निर्माण शुरू किया जाएगा।
डॉ. यादव ने बताया कि मंदिर निर्माण का कार्य पत्थरों की उपलब्धता पर निर्भर करेगा। जो पार्ट्स कम रहेंगे, उन्हें बनाने में समय लगेगा। जरूरत के मुताबिक पत्थर मंगवाए जाएंगे। अनुमान है कि यहां 90 प्रतिशत पत्थर उपलब्ध हैं। ऐसे में छह महीने से एक साल में कार्य पूरा हो जाएगा। करीब 37 फीट की ऊंचाई वाला मंदिर पौराणिक स्वरूप में आकार लेगा। निर्माण के बाद मंदिर समिति को सौंप दिया जाएगा।
डॉ. यादव के मुताबिक प्राचीन मंदिर किस देवता का है, इसकी पहचान के लिए सिद्धांत है। मंदिर के सिर दल व द्वार शाखा पर स्थित देवता के चिन्ह से पता चलता है कि मंदिर किस देवता का है। जैसे- सिर दल पर गणेश जी है, तो शिव मंदिर होगा। यदि सिर दल पर गरुड़ जी हैं, तो विष्णु मंदिर होगा। मंदिर के आधार भाग को देखने पर स्पष्ट हो जाएगा कि यह प्राचीन मंदिर किस देवता का है। वैसे, अभी तक यहां से मिले अवशेष से यह शिव मंदिर ही हो सकता है।