लंबी कतार में घंटों इंतजार से थक जाता शरीर, मन हो जाता खिन्न

बाबा महाकाल के दर्शन की अभिलाषा… ठीक से नहीं हो पाते दर्शन, मंदिर परिसर मेें वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग हो व्यवस्था

उज्जैन. बस से उतरे और ऑटो वाले से कहा भैया महाकाल मंदिर ले चलो। ऑटो वाला हम बूढ़ा-बूढ़ी को दूर ही छोड़कर चला गया। वहां से पैदल जैसे-तैसे इधर-उधर पूछते हुए सामान्य दर्शनार्थियों की लाइन में लगे। काफी भीड़ थी, डेढ़ घंटे चलने के बाद मंदिर परिसर तक पहुंचे हैं। अब चला नहीं जाता, जी चाहता है बैठ जाएं, लेकिन सब कह रहे हैं कि बस आ ही गया है, थोड़ा और चल लो। लकड़ी के सहारे धीरे-धीरे वहां तक भी पहुंचने की हिम्मत कर रहा हूं, बाबा थोड़ी सी शक्ति और दे दें, तो दर्शन कर लूं। यह दर्द है उन बुजुर्गों का जो दूरदराज से बाबा महाकाल के दर्शन करने बड़ी आस के साथ आते हैं, लेकिन अव्यवस्थाओं की मार से उनके अरमानों पर पानी फिर जाता है। मन मायूस हो जाता है। बता दें कि पत्रिका ने इस मामले को लेकर (वरिष्ठों को मिले सम्मान अभियान) शुरू किया है, जिससे यहां पहुंचने पर कोई श्रद्धालु किसी भी प्रकार से अपमानित न हो।

 

मंदिर प्रबंधन हमारे लिए अलग व्यवस्था करे

हाथ में लाठी का सहारा लिया रमेश चंद्र और उनकी पत्नी कल्याणी शुक्रवार को खरगोन के समीप किसी गांव से महाकाल दर्शन करने उज्जैन आए थे। लडख़ड़ाते कदमों से धीरे-धीरे चलकर वे मंदिर पहुंचे। मंदिर आने पर पहले वे बैरिकेड्स में चले, फिर झिगजेग और बाद में टनल से होते हुए मंदिर परिसर में आए। यहां जब उनसे पूछा गया कि आपने वीआईपी टिकट क्यों नहीं ली, उससे जल्दी पहुंच जाते, तो कहने लगे कि भगवान के घर वीआईपी बनकर नहीं आना चाहिए। सामान्य रूप से आने पर ही वे हमें आशीर्वाद देते हैं। फिर कहा कि मंदिर प्रबंधन को हमारे जैसों के लिए यदि अलग से कोई रास्ता तय कर दिया जाए, तो काफी परेशानियां कम हो जाएंगी।

 

हाथ पकड़ा, सहारा दिया और पहुंच गए मंदिर

मंदिर परिसर में ही आम दर्शनार्थियों की कतार में बुजुर्ग दंपति एक-दूसरे का हाथ पकड़े जल्दी-जल्दी चले जा रहे थे। उनकी पत्नी से चला भी नहीं जा रहा था, सांस फूल रही थी और डगमगाते कदमों से वे जैसे-तैसे चल रही थीं। वृद्ध पति ने हाथों का सहारा दिया तो वे थोड़ा संभलीं और उनके साथ चल दीं। ये लोग ग्वालियर से यहां दर्शन के लिए आए थे।

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