स्वीमिंग को जुनून बनाकर दिव्यांगता को दी मात

उज्जैन |  शारीरिक या मानसिक कमी के कारण स्वयं को दूसरों से कमजोर समझ लेना आसान है, लेकिन इन कमजोरियों को नजअंदाज कर कुछ कर दिखाने की जिद उस दिव्यांग को सामान्य व्यक्ति से भी अधिक सफल व ज्यादा आगे ले जाती है। शहर में एेसे कई दिव्यांग हैं, जिन्होंने दिव्यांगता को अपने लक्ष्य पर हावी नहीं होने दिया और आत्मबल के बूते न सिर्फ सफलता हासिल की बल्कि दूसरों के लिए भी मिसाल बने।

मंगलवार को विश्व विकलांग दिवस है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य दिव्यांग लोगों को जीवन व देश की मुख्य की धारा में लाना है ताकि वे आम लोगों की तरह महसूस कर सके। इस मामले में शहर ने कई लोगों ने बेहतर मिसाल प्रस्तुत की है। शहर में एेसे कई दिव्यांग हैं, जिन्होंने दिव्यांगता के आगे हार न मानते हुए कुछ करने की ठानी और करके भी दिखाया। विश्व विकलांग दिवस ( इंटरनेशनल डे ऑफ पर्सन्स विद डिसेब्लिटिस) पर एक रिपोर्ट।

 

हादसे में दोनों पैर खोए, फिर भी स्वयं को साबित किया

ऋषिनगर निवासी ५२ वर्षीय दीपक सक्सेना का जीवन कई उतार-चढ़ाव से गुजरा है। कम उम्र में पिता का साथ छूटने के बाद संघर्ष जीवन का हिस्सा बना, लेकिन उन्होंने हर चुनौती का सामना डट कर किया। तैराकी व डाइविंग का शौक उन्हें स्टूडेंट लाइफ से ही था। कॉलेज में स्वीमिंग टीम के कैप्टन बने, प्रदेश व राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भागीदारी कर पुरस्कार प्राप्त किए।

पढ़ाई पूरी होने के बाद दीपक ने एमआर की नौकरी शुरू की लेकिन स्वीमिंग-डाइविंग को नहीं छोड़ा। जीवन में बड़ा झटका वर्ष २००६ में आया जब टूर पर जाने के दौरान दुर्घटना में उन्होंने अपने दोनों पैर खो दिए। वह एक वर्ष तक घर पर रहे और परिवार की जिम्मेदारियों के बीच वे अवसाद के शिकार भी हो गए। एेसे समय पत्नी ने उनका मनोबल बढ़ाया और उन्होंने अवसाद से उभरने के लिए ट्रीटमेंट लेना शुरू किया।

 

स्वीमिंग व डाइविंग का जुनून कम नहीं हुआ

नकली पैर लगवाए व दोबारा एमआर की नौकरी शुरू की। दीपक ने फिर स्वीमिंग व डाइविंग के जुनून को जगाया। दोनों पैर नहीं होने के बाद भी वे फारवर्ड डाई बी पॉजिशन, ए पॉजिशन, बैक हॉफ ट्वीस्ट आदि डाइ बखूबी लगा लेते हैं। वे पेरा ओलिंपक में भी भागीदारी कर चुके हैं। दीपक चाहते हैं कि वे उज्जैन में खिलाडि़यों को डाइविंग की ट्रेनिंग दें।

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