14 मौतों के बाद उज्जैन में फिर लौटी झिंझर:भाजपा समर्थित सरपंच स्प्रिट और यूरिया से बना रहा था जहरीली शराब

शहर से 29 किमी दूर उज्जैन-उन्हेल के बांसखेड़ी गांव में शुक्रवार शाम जहरीली शराब बनाने का कारखाना मिला। छापेमारी में शराब बनाने की सामग्री समेत 16 लाख रुपए कीमत की स्प्रिट और यूरिया जब्त की गई। भाजपा समर्थित सरपंच स्प्रिट और यूरिया से जहरीली शराब तैयार कराता था,जो फरार हो गया। उसे पुलिस ने नामजद आरोपी बनाया है। जहरीली शराब बनाने की सूचना पर भैरवगढ़ पुलिस ने बांसखेड़ी गांव में दबिश दी। यहां खलाना-सिपाहारा में स्थित लखन कुमावत के खेत पर आठ ड्रम स्प्रिट के भरे हुए मिले जिसमें सात सीलबंद थे। प्रत्येक ड्रम में 200 लीटर स्प्रिट भरी हुई थी।

इसके बाद बांसखेड़ी सामुदायिक भवन में तलाशी लेने पर जहरीली शराब बनाने के उपकरण, मशीन और नोजल जब्त किए गए। सामुदायिक भवन के पास जिस कमरे में शराब बनाने की सामग्री मिली वह भाजपा सरपंच नरेंद्र कुमावत का है। हैरानी की बात यह है कि उक्त कमरे में जाने का रास्ता सामुदायिक भवन के अंदर से है। यह जानकारी लगते ही कलेक्टर आशीष सिंह और एसपी सत्येेंद्र कुमार शुक्ल भी मौके पर पहुंच गए। छापेमारी में सरपंच नरेंद्र नहीं मिला लेकिन उसे नामजद आरोपी बनाते हुए उसके ट्रैक्टर, कार भी जब्ती में ले लिए गए।

भाजपा समर्थित सरपंच

 

रात 10 बजे तक पुलिस की मौके पर कार्रवाई जारी थी। सीएसपी एआर नेगी ने बताया कि सरपंच फरार हो गया जिसे नामजद आरोपी बनाया गया है। उसके अलावा जहरीली शराब बनाने में अन्य जितने भी लोग लिप्त हैं, उन्हें भी आरोपी बनाएंगे। नोजल से एक बार में 11 बोतलें भरी जाती थी, कुएं से लाइन डाली : पुलिस ने सामुदायिक भवन से शराब की बोतलें भरने वाली नोजल व मशीन जब्त की।

इसमें 11 नोजल की मदद से एक साथ ग्यारह बोतलें भरी जाती थी। समीप के कुएं से पाइप लाइन जुड़ी मिली। सीएसपी नेगी ने आशंका जताई कि संभवत: कुएं से सीधे पाइप लाइन डालकर शराब बनाने में उपयोग किया जा रहा होगा। कुमावत का एक ट्रैक्टर भी मौके से जब्त कर थाने लाए है जिसमें प्याज की कटि्टयों की आड़ में शराब छुपाई हुई थी। वहीं एक गाड़ी भी जब्त की है जिसमें पीछे सीट निकाली हुई है। इसमेें एक अतिरिक्त नंबर प्लेट भी मिली। इससे आंशका है कि गाड़ी का उपयोग शराब सप्लाई मेंं किया जाता है।

खेतों में मिली जली हुईं बोतलें, 60 फीट गहरे कुएं में भी पड़े हैं ड्रम

दबिश की सूचना मिलते ही शराब माफिया कुमावत ने कई शराब बोतलें खेतों में जलवा दी। पुलिस को कुछ जगह खेतों में शराब की जली हुई बोतल व क्वार्टरों के अवशेष मिले। जबकि सामुदायिक भवन से लगे कुएं में भी ड्रम पड़े दिखाई दिए। कुआं करीब 60 फीट गहरा होने से ड्रम नहीं निकाले जा सके। शनिवार काे टीम कुएं से उक्त ड्रम निकलवाकर उनकी जांच करेगी। भैरवगढ़ टीआई ब्रजेश श्रीवास्तव ने बताया कि सामुदायिक भवन और कुएं के बाहर निगरानी के लिए पुलिस बल तैनात कर दिया गया है।

नशे का डोज बढ़ाने के लिए मिलाते थे जानलेवा यूरिया

 

पुलिस को स्प्रिट के 8 ड्रम मिले हैं, उसमें एक मेें 200 लीटर स्प्रिट है। एक लीटर से तीन से चार लीटर शराब तैयार होती है। नशे का डोज बढ़ाने के लिए इसमें यूरिया मिलना सामने आया है। इसके अधिक डोज से जान भी जा सकती है। सीएसपी ने कहा ब्लैक में स्प्रिट कौन दे रहा था, उसके बारे मेें सरपंच के पकड़े जाने पर पता चलेगा।

गांव में सरपंच की दबंगई, कई साल से शराब बना रहा, ब्लैक में स्प्रिट देने वाले भी बनेंगे आरोपी

आठ महीने पहले नगर निगम के रीगल टॉकीज भवन की छत से जहरीली शराब बनाने का कारखाना मिला था। उसके बाद अब बांसखेड़ी में दबिश देने पर ग्रामीणों से ही यह बात सामने आई कि पांच साल से अधिक समय से सरपंच नरेंद्र शराब बनवाकर बिकवा रहा है। उसकी गांव मेें दबंगई की वजह से सब डरते हैं। उसका बड़ा परिवार है और भाजपा के पूर्व जनप्रतिनिधि का उसे संरक्षण है। बताते हैं कि यह दबिश भी सीधे एसपी-कलेक्टर को सूचना मिलने के बाद दी गई।

भास्कर हस्तक्षेप (कपिल भटनागर, संपादक)

मुंह बंद थे या मुंहबंदी मिली थी

7 महीने पुराना वो मंजर। हर दिन मिलती लाशें। जहर मिलाने वालों के हर दिन खुलासे। गिरफ्तारियां। अफसरों के तबादले। पुलिस का गठजोड़। नेताओं के नाम… धीरे-धीरे उस झिंझर के जहर को भूल ही रहे थे कि शराब की शक्ल में मौतों का ये व्यापार फिर खुलकर सामने आ गया। सबकुछ फिर वैसा ही है। शुक्र है इस बार खुलासा बिना मौतों के हो गया। जहर का इतना बड़ा जखीरा बिना गठजोड़ के तो जमा हो ही नहीं सकता था। सबकुछ सालों से चल रहा था। वो भी सरकारी भवन से होकर। आबकारी कहां थी? पुलिस का खुफिया सिस्टम क्यों चुप था? जवाब बहुत आसान है- सत्तापक्ष समर्थित सरपंच खुद ही सरगना है। …तो कौन रोकता?

चुप्पी का कारण मुहबंदी थी या ग्रामीण क्षेत्र के उस बड़े नेता का दबाव, जिसके एक फोन पर थाना प्रभारी को लौटना पड़ा था। संक्रमण के इस भयावह दौर में भी ये मौत के सौदागर अवसर तलाश रहे थे। इतने दिन से मुंह बंद थे या मुंहबंदी मिल रही थी। जहर के इस जखीरे पर अब हर जवाब चाहिए। बड़े-बड़े भ्रष्टाचारी, बदमाशों, भू-माफिया और सूदखोरों पर कार्रवाई कर प्रदेश के मुखिया तक की शाबाशी ले चुका प्रशासन-पुलिस तंत्र अब उस चेहरे को भी सामने लाए, जो जहर का पूरा कारखाना लिए बैठा था। एक बड़ा सवाल और उठता है। इतनी सख्ती दिखाने के बाद भी स्प्रिट का जखीरा कैसे जमा हो गया?

इसका भी जवाब सीधा है- उसी बड़े नेता का साथ, जो अभी तक पर्दे के पीछे है। संक्रमण काल और लॉकडाउन-कर्फ्यू में लोग सब्जी, राशन, दूध और दवा तक के लिए संघर्ष कर रहे हैं, ये रगों में जहर घोलने वाले कितनी आसानी से जहरीली शराब तैयार कर रहे थे। कहां थी वो सख्ती जो शहर से लेकर गांव तक में लोगों को घर में रोके रखे है? चौराहे पर डंडे चलाने वालों की निगाह में क्यों नहीं आए? मजबूरी में घर से निकलने वालों को जेल और जुर्माने की सजा देने वाले भी आंखों पर पट्‌टी बांधे थे, या सत्ता पक्ष के एक बड़े नाम ने सभी को बुरा न देखने, न सुनने और कुछ भी न कहने के लिए मजबूर किया था। पल-पल जिंदगी के लिए जंग लड़ रही जनता अब उसी शुद्धिकरण का इंतजार कर रही है, जो 7 महीने पहले झिंझर से मौतों के बाद चला था। वक्त उसी का है, शुरुआत कीजिए।

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