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21/84 श्री कुक्कुटेश्वर महादेव
21/84 श्री कुक्कुटेश्वर महादेव :
प्राचीन समय में कौषिक नाम के राजा हुआ करते थे। वे अपनी प्रजा का ध्यान रखते थे और उनके राज्य में सभी सुख सुविधायें थीं। राजा कौषिक दिनभर मनुष्य रूप में रहते थे और रात को कुक्कुट (मुर्गे) का रूप ले लेते थे। इस कारण उनकी रानी विषाला हमेषा दुःखी रहती थी। राजा के कुक्कुट रूप लेने के कारण वे रति सुख का आनंद नहीं ले पाती थीं। एक दिन रानी ने दुःख के कारण मरने का विचार किया और वह गालव ऋषि के पास पहुँची। विषाला ने अपना दुख गालव ऋषि को बताते हुए इसका कारण पूछाा। गालव ऋषि ने बताया कि तुम्हारा पति पूर्व जन्म में राजा विदूरत का पुत्र था। वह विषयासक्त होकर मांसाहारी हो गया एवं अनेकों कुक्कुटों का भक्षण किया। इस कारण क्रुद्ध होकर कुक्कुटों के राजा ताम्रचूड़ ने उसे श्राप दिया कि वह क्षय रोग से पीडि़त होगा। श्राप के कारणवह क्षीण होने लगा। राजकुमार कौषिक वामदेव मुनि के पास गया और अपने रोग का कारण पूछा। वामदेव मुनि ने ताम्रचूड़ की बात बताई और उन्हीं से श्रापमुक्ति का उपाय पूछा। कौषिक ताम्रचूड़ के पास गया और निवेदन किया। ताम्रचुड़ ने कहा तुम निरोगी रहोगे और शासन करोगे परन्तु रात को अदृष्य हो जाओगे। रानी ने गालव ऋषि से श्राप मुक्ति का उपाय पूछा तो उन्होनें बताया कि महाकाल वन में पक्षी योनि विमोचन लिंग जबलेश्वर के पास स्थित है वहां जाओ और उनका पूजन करो। राजा रानी महाकाल वन में आये और शिवलिंग का पूजन किया। रात्रि होने पर राजा कौषिक अदृष्य नहीं हुआ और रानी के साथ रति सुख को प्राप्त किया। मान्यता है कि शिवलिंग के दर्शन से कोई भी पितृ नरक प्राप्त नहीं होता।