34 हजार में बिके ‘कंगना-आर्यन’:​​​​​​​उज्जैन में गधों का मेला, ‘वैक्सीन’ नाम का गधा 14 हजार में बिका

उज्जैन में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गधों का मेला लगा है। मेले में इस बार सबसे ज्यादा चर्चा कंगना और आर्यन नाम के गधे की जोड़ी की रही। ये जोड़ी 34 हजार रुपए में बिकी। इसके अलावा वैक्सीन नाम का गधा भी 14 हजार रुपए में बिका। इसके अलावा इसमें भूरी घोड़ी की कीमत 2 लाख रुपए लगाई गई।

बड़नगर रोड पर शिप्रा नदी किनारे करीब 100 से ज्यादा गधे और घोड़े बिकने आए हैं। मेले के संरक्षक हरिओम प्रजापति ने बताया कि ट्रेंड में चल रही खबरों और व्यक्तियों के नाम पर गधों का नाम रखने से उनका सौदा जल्दी हो जाता है। प्रजापति ने बताया कि लोगों को वैक्सीन लगाने की प्रेरणा देने के लिए एक गधे का नाम ही वैक्सीन रख दिया।

भूरी घोड़ी की कीमत 2 लाख

मेले में घोड़े भी बिकने आए हैं। इसमें सबसे महंगी घोड़ी भूरी की कीमत 2 लाख रुपए तय की गई है, जबकि बादल नाम के घोड़े के दाम डेढ़ लाख रुपए रखे गए हैं। घोड़ी के ज्यादा दाम के पीछे तर्क है कि घोड़ी शादियों में काम आती है।

गधे केवल माल ढुलाई के काम आ रहे

गधों के व्यापारी कमल प्रजापत बताते हैं कि इस बार भी गधों के मेले में रौनक नहीं रही। इस कारण धंधा नहीं हो पाया। पहले गधों का इस्तेमाल ट्रांसपोर्टेशन में भी किया जाता था। अब केवल माल ढुलाई उसमें भी सबसे ज्यादा बिल्डिंग मटेरियल की ढुलाई के काम आ रहे हैं। इसके अलावा, ईंट-भट्‌टों में भी किया जाता है।

यहां से आए गधों के सौदागर

गधों के सौदागर इस बार केवल राजस्थान व महाराष्ट्र के कुछ इलाकों के अलावा सुसनेर, शाजापुर, जीरापुर, भोपाल, मक्सी, सारंगपुर से आए हैं। प्रजापति ने कहा कि इस बार कोरोना का डर कम नहीं हुआ था। साथ ही, सरकार ने भी गाइडलाइन स्पष्ट रूप से नहीं बताई थी। इसके चलते गधों का व्यापार करने वाले इस बार कम संख्या में ही आए।

दांत देखकर लगाते हैं दाम

कमल प्रजापत के मुताबिक, गधों को दांत देखकर खरीदते हैं। इनके तीन दांत होते हैं। जितनी कम उम्र के होते हैं, उतना ज्यादा पैसा मिलता है। दांत का साइज भी देखा जाता है। अमूमन गधों की कीमत 3 हजार रुपए से शुरू होती है। इनकी अधिकतम उम्र 4 से 5 साल होती है। इसके बाद बूढ़ा हो जाता है।

MPPSC की परीक्षा में भी पूछा गया था ये सवाल

मध्यप्रदेश में गधों का मेला कहां लगता है? यह सवाल MPPSC की 2016 की परीक्षा में पूछा गया था। इसमें चार विकल्प दिए गए थे। भोपाल, रीवा, उज्जैन और सोडलपुर। गधों का मेला उज्जैन के अलावा जयपुर के पास भावगढ़ में भी लगता है। वहां गधों के अलावा कोई और जानवर बिकने नहीं आता।

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