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श्रावण-भाद्रपद में महाकाल की पहली सवारी 14 जुलाई को: वैदिक उद्घोष, राजसी ठाठ और आस्था की भव्यता का होगा अद्भुत संगम, चांदी की पालकी में नगर भ्रमण करेंगे भगवान शिव!
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर से श्रावण-भाद्रपद माह की पारंपरिक सवारियों का शुभारंभ इस बार सोमवार, 14 जुलाई 2025 से होने जा रहा है। यह सवारी केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि श्रद्धा, शौर्य और संस्कृति का जीवंत उत्सव है, जिसमें भगवान महाकाल स्वयं नगर भ्रमण पर निकलते हैं और अपने भक्तों को साक्षात दर्शन देकर अनंत कृपा प्रदान करते हैं।
इस वर्ष की पहली सवारी विशेष रूप से राजसी वैभव और वैदिक परंपराओं से सुसज्जित होगी। मंदिर प्रबंध समिति द्वारा चांदी की नवीन पालकी को पूरी तरह चमकाया गया है और उसका ट्रायल भी सफलता से पूरा किया जा चुका है। सोमवार को दोपहर बाद 4 बजे, श्री महाकालेश्वर भगवान ‘मनमहेश स्वरूप’ में चांदी की पालकी में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देने के लिए नगर भ्रमण पर निकलेंगे। इससे पूर्व सभामंडप में भगवान का विधिवत पूजन-अर्चन किया जाएगा।
सशस्त्र पुलिस बल द्वारा पालकी को सलामी (गार्ड ऑफ ऑनर) दी जाएगी, जिससे यह आयोजन न केवल धार्मिक, बल्कि एक गरिमामयी राजकीय स्वरूप भी धारण करता है। सवारी में भजन मंडली, पुलिस बैंड, घुड़सवार दल, होमगार्ड्स, पुजारीगण और अधिकारी सम्मिलित रहेंगे।
बता दें, सवारी मंदिर से निकलकर महाकाल रोड, गुदरी चौराहा, बक्षी बाजार, कहारवाड़ी होते हुए रामघाट पहुंचेगी, जहां पवित्र शिप्रा जल से भगवान का अभिषेक किया जाएगा। इसके उपरांत सवारी रामानुजकोट, मोढ़ की धर्मशाला, कार्तिक चौक, खाती का मंदिर, सत्यनारायण मंदिर, ढाबा रोड, टंकी चौराहा, छत्री चौक, गोपाल मंदिर, पटनी बाजार, गुदरी बाजार से होकर पुनः महाकाल मंदिर में लौटेगी।
इस बार सवारी की थीम – वैदिक उद्घोष:
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की भावना के अनुरूप इस बार हर सवारी में एक अलग थीम तय की गई है। पहली सवारी में 500 से अधिक वैदिक बटुक भगवान के पूजन-अभिषेक के दौरान वैदिक मंत्रों का उद्घोष करेंगे। यह उद्घोष रामघाट और दत्त अखाड़ा परिसर में विशेष रूप से गूंजेगा। इसके साथ ही जनजातीय कलाकारों का दल परंपरागत नृत्य प्रस्तुत करेगा, जो सांस्कृतिक विविधता का जीवंत चित्रण होगा।
श्रावण मास में विशेष दर्शन व्यवस्था:
श्रावण के प्रत्येक सोमवार को भक्तों को अलसुबह ही दर्शन का सौभाग्य मिलेगा। रात 2:30 बजे मंदिर के पट खोले जाएंगे, जिसके पश्चात पंचामृत पूजन, अभिषेक और भस्म आरती सम्पन्न होगी। सप्ताह के अन्य दिनों में मंदिर के पट प्रात: 3 बजे खुलेंगे।
मंदिर प्रशासन द्वारा जारी गाइडलाइन:
सवारी मार्ग पर भट्टी या तेल का कड़ाव न रखें, श्रद्धालु सवारी के बीच प्रसाद या चित्र न बांटें, कोई भी उल्टी दिशा में न चले, वाहन गलियों में खड़ा कर मार्ग अवरुद्ध न करें। साथ ही बाबा की पालकी के अत्यधिक समीप कोई अनावश्यक रूप से न आए। नौ भजन मंडलियां, झांझ-डमरू दल पारंपरिक रूप से सवारी का हिस्सा होंगे।