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उज्जैन के इस मंदिर लगता है माता को मदिरा का भोग, महाअष्टमी पर कलेक्टर करते हैं नगर पूजा; ये है मान्यता
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
उज्जैन एक धार्मिक नगरी है और यहाँ हर पर्व-त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, साथ ही हर पर्व से जुड़ी अपनी एक अलग मान्यता है। आज हम आपको उज्जैन में होनी वाली नगर पूजा के बारे में बताने जा रहे हैं।
मान्यताओं के अनुसार, नगर पूजा की यह परंपरा राजा विक्रमादित्य के समय से चली आ रही है। कहा जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य नवरात्रि पर्व के महाअष्टमी पर नगर में समृद्धि और खुशहाली के लिए चौबीस खंबा माता मंदिर में माता महालया और महामाया के साथ ही भैरव का पूजन कर नगर पूजा करते थे।
मान्यता है कि शहर में कोई भी आपदा या बीमारी के संकट को दूर करने के लिए और सुख, समृद्धि के लिए चौबीस खंबा माता मंदिर में मदिरा का भोग लगाया जाता है। बता दें, उज्जैन नगर में प्रवेश का प्राचीन द्वार है। नगर रक्षा के लिए यहां चौबीस खंभे लगे हुए थे। इसलिये इसे चौबीस खंभा द्वार कहते हैं। यहां महाअष्टमी पर सरकारी तौर पर पूजा होती है। फिर उसके बाद पैदल नगर पूजा की जाती है ताकि देवी मां नगर की रक्षा कर सकें और महामारी से बचाएं।
शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी पर चौबीस खंबा मंदिर में माता महामाया और महालया की पूजा कर नगर पूजा प्रतिवर्ष कलेक्टर ही करते हैं। इसके बाद शासकीय दल नगर पूजा के लिए निकलता है। इस दौरान कोटवार मदिरा से भरी हांडी लेकर चलते हैं, इसकी धार नगर के रास्तों पर बहती है। ढोल के साथ निकले शासकीय दल के सदस्य 12 घंटे तक 27 किलोमीटर के दायरे में आने वाले चामुंडा माता, भूखी माता, काल भैरव, चंडमुंड नाशिनी सहित 40 देवी, भैरव और हनुमान मंदिरों में पूजा करते हैं।
देवी और भैरव को मदिरा का भोग लगाया जाता है। हनुमान मंदिरों में ध्वजा अर्पित की जाती है। करीब 8 बजे गढ़ कालिका माता मंदिर में पूजन के बाद नजदीक के हांडी फोड़ भैरव मंदिर में पूजा समाप्त होती है।
नगर पूजा के दौरान सभी चालीस मंदिरों में एक लाल कपड़े का उपयोग किया जाता है। इसमें सिंदूर और कुमकुम लगाकर सभी भैरव और माता मंदिरों में पूजन किया जाता है। जब यात्रा का समापन हांडी फोड़ भैरव मंदिर पर होता है, तब लाल कपड़े के छोटे-छोटे टुकड़े कर प्रसाद के रूप में भक्तों को बांटे जाते हैं। मान्यता है कि यह बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिए घर पर बांधे जाते हैं। वहीं, पूजन खत्म होने के बाद माता मंदिर में चढ़ाई गई शराब को प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है। इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रसाद लेने आते हैं। लोगों का कहना है कि मदिरा का भोग लगाने के बाद पूरे नगर में मदिरा की धार इसलिए भी लगाई जाती है कि अतृप्त आत्माएं भी तृप्त होकर नगर की रक्षा करें।