राजा विक्रमादित्य को भूखी माता ने दिया था एक वचन, शिप्रा के पार रहकर आज भी कर रहीं पालन

सार

धार्मिक नगरी उज्जैन में देवी मां के कई प्राचीन मंदिर हैं। ऐसा ही एक मंदिर ही भूखी माता का। कहा जाता है कि भूखी माता ने राजा विक्रमादित्य को एक वचन दिया था, जिसे वे आज तक निभा रही हैं।

विस्तार

मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में शिप्रा नदी के किनारे भूखी माता का प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में दो देवियां विराजमान हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह दोनों बहने हैं। इनमें से एक को भूखी माता और दूसरी को धूमावती के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि दोनों देवियों ने राजा विक्रमादित्य को शिप्रा पार रहने का वचन दिया था।

भूखी माता मंदिर से जुड़ी अनेक किंवदंतियां हैं। कथानकों के अनुसार प्राचीन काल में उज्जैन नगर में प्रतिदिन नया राजा बनता था, वजह राजा को देवी रात्रि के तीसरे प्रहर में अपना आहार बनाती थी। एक दिन विक्रमादित्य एक वृद्ध दंपत्ति के पुत्र के एवज में राजा बने और देवियों को मिष्ठान आदि अर्पित कर प्रसन्न किया। देवी ने वचन मांगने को कहा, तो राजा ने नित्य नर बलि बंद करने तथा नगर सीमा छोड़कर शिप्रा नदी के बाहर रहने का वचन मांगा। साथ ही यह भी वचन लिया कि प्रत्येक बारह वर्ष में सिंहस्थ महापर्व के समय एक पल के लिए नगर में प्रवेश करेंगी। देवी ने तथास्तु कहकर राजा विक्रमादित्य को आशीर्वाद दिया। कहा जाता है कि नवरात्र के दौरान स्थानीय तथा आसपास के शहरों से बड़ी संख्या में भक्त भूखी माता के दर्शन करने आ रहे हैं। मंदिर के अंदर की ओर एक बड़ा शेर बना है और बाहर दो दीपमालाएं हैं। मंदिर के पुजारी चौहान ने बताया नवरात्रि यह प्रज्जवलित की जाती हैं। शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी पर यहां माता को मदिरा का भोग लगता है। सुबह-शाम ढोल-नगाड़ों से आरती की जाती है।

अब पशुओं की दी जाती है बलि
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, मंदिर में अब इंसान की बलि नहीं दी जाती है। पशुओं की बलि दी जाती है। ऐसे में ग्रामीण इलाकों के लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर यहां आकर बलि प्रथा का निर्वहन करते हैं। कई लोग पशु क्रूरता अधिनियम के तहत बलि नहीं देते और पशुओं का अंग-भंग कर मंदिर में ही छोड़ देते हैं।

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