उज्जैन:सप्त सागरों में एक ‘रुद्रसागर’ 5 माह में होगा पुनर्जीवित, वैज्ञानिक परीक्षण शुरू

जांच करने मुंबई, भोपाल से उज्जैन पहुंची वैज्ञानिकों की टीम….

उज्जैन। 100 वर्ष पहले शिप्रा नदी 12 महीने प्रवाहमान रहती थी। इसमें शुद्ध पानी कल-कल बहता था। महाकालेश्वर मंदिर के पीछे स्थित रुद्रसागर में भी साफ पानी शिप्रा नदी से ही रिचार्ज होता था, लेकिन समय के साथ शहर के फैलाव व अतिक्रमण के कारण शिप्रा नदी के तट छोटे होते गये और अब रूद्रसागर में बारिश व नालों का पानी स्टोर होता है। इसे पुन: शुद्ध जल से भरने के लिये भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय की कंपनी वाप्कोस लि. के वैज्ञानिक व इंजीनियरों की टीम ने काम शुरू किया है जो करीब 5 माह में पूरा होगा।

वैज्ञानिक डॉ. रोमन का कहना है कि प्रारंभिक स्टडी में पता चला है कि महाकालेश्वर मंदिर के पीछे स्थित रुद्रसागर करीब 100 वर्षों पूर्व शिप्रा नदी के पानी से ही रिचार्ज होता था और शिप्रा नदी 12 महीने प्रवाहमान रहती थी….

वाप्कोस लि. के डायरेक्टर डॉ. उदय रोमन ने बताया कि हाईड्रोलिक प्रोजेक्ट स्टडी के तहत स्मार्ट सिटी योजना अंतर्गत रुद्रसागर को पुनर्जीवित करने के लिये सर्वे का काम शुरू किया गया है। डॉ. रोमन की टीम में वैज्ञानिक देवेन्द्र जोशी मुंबई, डॉ. विश्वकर्मा भोपाल, इंजीनियर आदित्य पाटीदार और महेश शर्मा शामिल हैं। यह लोग सुबह शिप्रा नदी के छोटे पुल पर पहुंचे और नाव में बैठकर नदी के तल से 100 फीट नीचे मौजूद पत्थर, मिट्टी, रेती आदि की जानकारी जुटाई। यहां से गऊघाट तक शिप्रा नदी की वर्तमान और पूर्व स्थिति का आंकलन शुरू किया गया है। डॉ. रोमन का कहना है कि प्रारंभिक स्टडी में पता चला है कि महाकालेश्वर मंदिर के पीछे स्थित रुद्रसागर करीब 100 वर्षों पूर्व शिप्रा नदी के पानी से ही रिचार्ज होता था और शिप्रा नदी 12 महीने प्रवाहमान रहती थी।

 

रुद्रसागर का फैलाव नदी तक था :

 वैज्ञानिकों की टीम को इस बात के भी पुख्ता प्रमाण मिले हैं कि रुद्रसागर का फैलाव नृसिंहघाट की ओर शिप्रा नदी तक था जो अतिक्रमण और अन्य निर्माण के कारण सीमित क्षेत्र में बदल गया है।

 

सप्त सागर भी एक दूसरे से जुड़े थे

वाप्कोस की टीम के सदस्यों ने बताया कि पौराणिक महत्व के सप्त सागर जिनमें रूद्र सागर के अलावा गोवर्धन सागर, पुरुषोत्तम सागर, विष्णु सागर, क्षीरसागर, पुष्कर सागर, रत्नाकर सागर एक दूसरे से जुड़े थे। शिप्रा नदी का पानी रुद्रसागर में एकत्रित होता और लेवल बढऩे के बाद यही पानी दूसरे सागरों में पहुंच जाता था।

 

कोटितीर्थ कुंड की आवक भी रुद्रसागर से

वाप्कोस की टीम शिप्रा नदी पर सर्वे कर रही थी उसी दौरान वैज्ञानिकों को यह भी पता चला कि नदी के किनारे लगे बोरिंग से पानी ओवरफ्लो होकर बहता है। शिप्रा आरती द्वार और मौलाना मौज के नीचे स्थित बोरिंग ओवरफ्लो होते हैं जो इस बात का प्रमाण है कि यह बोरिंग रुद्रसागर की ओर से आने वाले पानी से ही ओवरफ्लो होते हैं, साथ ही महाकालेश्वर मंदिर स्थित कोटितीर्थ में भी रुद्रसागर के पानी की ही आवक होती होगी।

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