कार्तिक मेले के भारी बजट पर निगम कमिश्नर की कैंची

40 लाख का प्रस्ताव 10 लाख किया

2019 में मेला आयोजन के लिए 30 लाख रुपए खर्च हुए थे…

फिजूल खर्ची रोकने के लिए कार्तिक मेले के भारी बजट पर निगम कमिश्नर की कैंची….

उज्जैन।कार्तिक मेले के नाम पर होने वाली फिजूल खर्ची पर रोक लगाने के लिए नगर निगम आयुक्त ने मेले के बजट पर सख्ती कर कैची चला दी है। बजट की राशि को 40 लाख रुपए से घटाकर 10 लाख रुपए कर दिया गया है। शहर में कोविड प्रतिबंध हटाने के पर दो साल बाद होने वाले परंपरागत कार्तिक मेले के बड़े बजट को खर्च करने का सपना देखने वालों पर नगर निगमायुक्त अंशुल वज्रपात हो गया है।

बताया जाता है कि कार्तिक मेला 2021 के लिए नगर निगम की जनसंपर्क शाखा द्वारा 40 लाख रु. के बजट का प्रस्ताव बनाकर स्वीकृति के लिए आयुक्त को प्रस्तुत किया था। इसमें मंच की साज-सज्जा, सत्कार, सांस्कृतिक कार्यक्रम के कलाकार,कवि सम्मेलन-मुशायरे का मानदेय और अन्य खर्च शामिल था। सूत्रों के अनुसार प्रस्ताव में शामिल राशि की अलग-अलग मद देखकर आश्चर्य में पड़ गए।

बताते है कि मंच सज्जा के लिए ही 75 हजार रु. से अधिका का प्रावधान किया था,जबकि निगम द्वारा कार्तिक मेला ग्राउण्ड़ पर हाईटेक मंच का निर्माण किया गया है। इस पर सजावट के लिए अधिक खर्च की आवश्यकता नहीं है। इस एक ही मद ने निगमायुक्त गुप्ता को हैरान कर दिया। इसके बाद उन्होंने बजट की गंभीरता स्टडी की। कई प्रावधान अनावश्यक खर्च के होने पर कार्तिक मेले के बजट को 10 लाख तक सीमित करने के निर्देश दिए है। बताया जाता है कि वर्ष २०१९ के कार्तिक मेले के आयोजन पर करीब 30 लाख रुपए का खर्च हुआ था।

कई के अरमान ठंडे हो गए… कार्तिक मेले के आयोजन के नाम पर अपनों को उपकृत करने के साथ अनुचित खर्च के जरिए लाभ की मंशा रखने वालों के लिए नगर निगम आयुक्त का निर्देश भारी पड़ गया है। ऐसे में दो साल बाद होने वाले कार्तिक मेले के माध्यम से लाभ उठाने का सपना दूट गया है।

हां कटौती की है…नगर निगम की आर्थिक स्थिति को देखते हुए मितव्ययिता बरतना आवश्यक है। कार्तिक मेले में के बजट में काटौती की है। बजट कितना कम किया है यह अभी नहीं बताया जा सकता है।-अंशुल गुप्ता,नगर निगम आयुक्त

इस संबंध में कुछ भी नहीं कह सकता हूं। आपको कमिश्रर साहब से बात करना होगी।-रईस निजामी, प्रभारी जनसंपर्क अधिकारी

सन 1912 से शासकीय व्यवस्था का मेले से जुड़ाव : कार्तिक मेले का सांस्कृतिक इतिहास विक्रमादित्य कालीन है। आयोजन से शासकीय व्यवस्था का जुड़ाव 1912 से हुआ। नगर निगम में मौजूद रिकॉर्ड के अनुसार तत्कालीन उज्जैन नगर पालिका ने 1912 में पहली बार मेले की व्यवस्था अपने हाथ में ली थी। नपा के खर्च पर मेला लगाया। मेले में व्यावसायिक और सांस्कृतिक क्षेत्र को अलग किया गया। इसका संपूर्ण खर्च नगर निगम द्वारा वहन किया जाता है। इमें वर्ष दर वर्ष वृद्धि की जाती रहीं है।

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