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यह अस्पताल महीनेभर में करता है 1 करोड़ खर्च, लेकिन नहीं आ रहे मरीज़
उज्जैन | प्रबंधन की लापरवाही के चलते माधव नगर अस्पताल शासन के लिए सफेद हाथी साबित हो रहा है। यहां की लचर व्यवस्थाओं के चलते मरीजों का भी इससे मोह भंग होता जा रहा है या यूं कहें कि यहां वाले मरीजों को उपचार के लिए इतना परेशान होना पड़ता है कि वे खुद ही निजी अस्पताल का रुख कर लेते हैं, जबकि अस्पताल के संचालन के लिए १९ डॉक्टर और ४८ नर्स सहित कुल १४९ कर्मचारियों की टीम यहां कार्यरत है। बावजूद महीनेभर में यहां भर्ती मरीजों की संख्या कभी भी १२०० से अधिक नहीं पहुंचती।
माधव नगर अस्पताल पर हर महीने करीब एक करोड़ रुपए खर्च होते हैं। इसमें से सबसे बड़ा हिस्सा यहां पदस्थ डॉक्टर, नर्स और स्टाफ के वेतन के रूप में वितरित किया जाता है। हर महीने यहां पदस्थ स्टाफ को ८० लाख से अधिक वेतन दिया जाता है। जनवरी महीने में कुल भर्ती मरीजों की संख्या ११८० रही। इस महीने में अब तक १०३० भर्ती मरीजों का उपचार किया गया है। सोमवार को ४० मरीज भर्ती रहे। इनमें से सबसे ज्यादा अस्थि संबंधी २७ मरीज, ६ जनरल, आई वार्ड में १ और एनआरसी में ८ मरीज भर्ती रहे। अस्पताल के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो किसी भी महीने में यहां १२०० से अधिक मरीज भर्ती नहीं रहते। विशेषज्ञों के अनुसार मरीजों की कम संख्या के पीछे यहां के प्रबंधन की लापरवाही है। जिससे यहां पहुंचे मरीज भी निजी अस्पतालों में चले जाते हैं।
आई वार्ड में सबसे अधिक, अस्थि में सबसे कम
माधव नगर अस्पताल में सबसे ज्यादा अस्थि संबंधी मरीज पहुंचते हैं, लेकिन यहां सबसे कम अस्थि संबंधी ऑपरेशन किए जाते हैं। लंबे समय से यहां अस्थि रोग विशेषज्ञ की कमी थी। केवल दो मेडिकल ऑफिसर अस्थि मरीजोंं का उपचार कर रहे थे, जिसके चलते लंबे समय तक यहां एक भी अस्थि का मेजर ऑपरेशन नहीं किया गया। बीते दो वर्ष में यहां कुल ८७० मेजर ऑपरेशन किए गए। इसमें से ६११ आंख और २५९ अस्थि मरीजों के मेजर ऑपरेशन किए गए। जो कि बेहद कम है। इन आंकड़ों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि माधव नगर अस्पताल शासन के लिए सफेद हाथी साबित हो रहा है।
परेशान होकर जाते हैं निजी अस्पताल
ग्राम खरसौद कलां निवासी आनंदीबाई पति हरीश ने बताया कि १७ फरवरी को उनका देवास रोड पर दुर्घटना में पैर टूट गया था। दुर्घटना के बाद वे जिला अस्पताल पहुंची, जहां से उन्हें माधव नगर अस्पताल भेज दिया गया। इसके बाद दो दिन में एक्सरे हुआ और डॉक्टर ने तीन दिन बाद शुक्रवार को ऑपरेशन करने के लिए कहा। पैर में डालने के राढ़-प्लेट बाजार से खरीदने की बात कही। तकलीफ ज्यादा होने के कारण उन्होंने जल्दी ऑपरेशन करने के लिए कहा, लेकिन डॉक्टर ने मना कर दिया। इसके बाद वे निजी अस्पताल में गई। जहां उसी दिन शाम को डॉक्टर ने ऑपरेशन कर दिया।
घर लेने नहीं जा सकते मरीज
अस्पताल में भर्ती मरीजों की संख्या पर्याप्त है। मरीजों को घर पर लेने नहीं जा सकता है। मरीज क्यों नहीं आ रहे, ये बात वे ही बता सकते हैं।
डॉ.विनोद गुप्ता, प्रबंधक