यूडीए की दुकानें दोगुना कीमत पर बिकी:निगम की 164 दुकानों को खरीदने के लिए सिर्फ 80 आवेदन आए, कारण- क्वालिटी से समझाैता

  • निगम की दुकानों में दिलचस्पी नहीं

निगम ने हाल ही में अलखधाम, मंछामन और कानीपुरा क्षेत्र में दुकानों को बेचने के लिए आवेदन खोले। 164 दुकानों के लिए सिर्फ 80 आवेदन ही आए। मंछामन क्षेत्र की 15 दुकानों के लिए तो एक भी आवेदन नहीं आया, जिनके आवेदन आए उनमें भी दाम ऐसे कि निर्माण की लागत भी निकलना मुश्किल है।

ऐसा इसलिए है कि यूडीए का पूर्ण रूप से निर्माण मार्केट की परिस्थिति को समझ कर करना है। जबकि निगम के पास जो जमीन होती है, उसी पर निर्माण कर बेचती है। उनके इंजीनियर भी मेेंटेनेंस और नाली निर्माण तक ही सीमित हैं। वहीं यूडीए के इंजीनियर ज्यादा अनुभवी होते हैं क्योंकि वह हमेशा कॉलोनी डेवलप करने के साथ ही मार्केट रिसर्च करते हैं और उसी हिसाब से जमीन खरीदकर प्रॉपर्टी बेचते हैं।

भले ही उनकी कीमत ज्यादा होती है लेकिन लोगों में इन्हें खरीदने की दिलचस्पी होती है। यूडीए मार्केट के ट्रेंड के हिसाब से निर्माण करता है, जैसा कि नानाखेड़ा स्थित श्यामाप्रसाद मुखर्जी कॉम्प्लेक्स में देख सकते हैं। इसे पूर्ण रूप से वातानुकूलित बनाया है। कोई सा भी मौसम हो, यहां हवा और धूप रहेगी ही। निगम की दुकानों में इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता।

साथ ही प्रॉपर्टी की पांच साल की गारंटी भी देते हैं। इस दौरान कुछ भी काम होता है उसे यूडीए ही करता है। यूडीए ने मेला कार्यालय, मंगलनाथ मंदिर का स्ट्रक्चर, महाकाल मंदिर में कई निर्माण का काम किया है। समय-समय पर इंजीनियर को ट्रेनिंग देकर अपडेट भी किया जाता है।
(जैसा रिपोर्टर जलज नागदा को बताया )

इसलिए सफल… मार्केट रिसर्च के बाद प्लान

  • पूर्ण निर्माण होने के बाद दुकानों को बेचते हैं।
  • प्रचार-प्रसार बेहतर होता है, लोकेशन भी प्राइम होती है।
  • दुकानों के बाहर पार्किंग की सुविधा भी उपलब्ध।
  • इंजीनियरों को निर्माण का अनुभव ज्यादा, साथ ही समय-समय पर ट्रेनिंग सेशन।
  • प्रीमियम डिजाइनिंग के साथ ही अन्य सुविधाा भी, बाहर खुली जगह।
  • निर्माण के पांच साल तक की गारंटी। साथ ही वातानुकूलित दुकानें।
  • महाकाल प्रवचन हॉल, मंगलनाथ मंदिर का स्ट्रक्चर, मेला कार्यालय जैसे बड़े स्ट्रक्चर का बनाने का अनुभव।

यहां बगैर निर्माण के ही बेचने का प्रयास

  • अभी निर्माण ही पूरा नहीं, सभी दुकानों के आवेदन की प्रक्रिया पूरी।
  • अलखधाम क्षेत्र को छोड़कर मंछामन और कानीपुरा की दुकानों की लोकेशन बेहतर नहीं।
  • अलखधाम में तो दूसरी मंजिल की दुकानें ही बेचने के आवेदन मंगवाए, लेकिन वहां काम शुरू नहीं हुआ। कैसी होगी दुकान, यह सिर्फ अनुमान पर आधारित।
  • दुकानों के बाहर पार्किंग की कोई खास जगह नहीं। दुकानों का बेस ही काफी ऊंचा।
  • कानीपुरा क्षेत्र की दुकानें मुख्य मार्ग से जुड़ी हुई नहीं।

फॉर्म भरने की प्रक्रिया भी तकनीकी उलझनाें से भरी

निगम की दुकानों को खरीदने की प्रक्रिया भी मुश्किल भरी है। इसके लिए ऑनलाइन फाॅर्म के साथ ही डिजिटल सिग्नेचर (ऑनलाइन आवेदन में अटैच होता है) की डिमांड की गई। कई जरूरतमंद, डिजिटल सिग्नेचर को भी समझ नहीं पाए, जबकि इसका बेसिक खर्चा दो हजार रुपए है और इसे बनाने में भी दो दिन लगते हैं। आखिरी दिन आवेदन करने वाले इस प्रक्रिया से पीछे रह गए। इधर, यूडीए की दुकानों के आवंटन में डिजिटल सिग्नेचर की जरूरत नहीं रखी। निगम को जो आवेदन प्राप्त हुए हैं, उनमें भी कई निरस्त हो सकते हैं।

क्या कमियां हैं, देख रहे हैं ज्यादा आवेदन क्यों नहीं आए
कम आवेदन आए हैं। वैसे हम पहली बार दुकानों को ऑनलाइन सेल कर रहे हैं। क्या कमियां हैं, दिखवा रहे हैं। निर्माण पूरा हो चुका है लेकिन रोड नहीं बन पाए हैं। हो सकता है यह कारण हो या फिर प्रक्रिया सरल की जरूरत है। इनमें सुधार किया जाएगा।
नीता जैन, उपायुक्त, नगर निगम।

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