हर अस्पताल का एक ही जवाब बेड नहीं है:50 से ज्यादा मरीजों को लौटाया,

अब हॉस्पिटल भी हांफने लगे हैं…हालात बेकाबू हो चुके हैं। निजी-सरकारी मिलाकर सभी हॉस्पिटल से 50 से ज्यादा मरीजों को लौटाया जा चुका है। वजह है ऑक्सीजन संकट। हॉस्पिटल प्रबंधन की ओर से एक ही जवाब- बेड नहीं हैं। ऑक्सीजन आधे से एक घंटे की है। नए मरीजों को कैसे भर्ती करें। एक्टिव मरीज 2737 होने से हालात ऐसे हो गए हैं कि लोगों को अपने ही घर पर ऑक्सीजन सिलेंडर लगाने पड़े हैं। मंगलवार को माधवनगर, चरक, आरडी गार्डी से लेकर शहर के निजी अस्पतालों तक में बेड (ऑक्सीजन वाले का) संकट था।

कोविड हॉस्पिटल माधवनगर में 123 बेड की क्षमता है, यहां पर मंगलवार को कुल 170 मरीज भर्ती थे। ओपीडी और कम्प्यूटर रूम की ओर ही 27 मरीज भर्ती हैं। कलेक्टर आशीष सिंह का कहना है कि जल्द ही पीटीएस में सेंटर शुरू किया जाएगा। वहां ऑक्सीजन की भी व्यवस्था रहेगी। ताकि मरीजों को दिक्कत न हो। इसके अलावा चरक में बुधवार को 60 बेड ऑक्सीजन से लैस बढ़ाए जाएंगे।

दर्द और संघर्ष से भरे यह किस्से : संक्रमित की सांसें बचाने के लिए लगती रही दौड़

हर अस्पताल में गुहार, इलाज नहीं मिला तो घर पर ऑक्सीजन लगाई

सांईधाम कॉलोनी के 53 साल के बुजुर्ग सोमवार को पॉजिटिव आए थे। ऑक्सीजन लेवल 88 पर था। पुत्र उन्हें प्राइवेट अस्पताल लेकर गया, यहां भर्ती नहीं करने पर माधवनगर पहुंचे। यहां से आरडी गार्डी गए। यहां भी भर्ती नहीं किया तो चरक पहुंचे। फिर सीएचएल सहित अन्य अस्पतालों में संपर्क किया, कहीं भी ऑक्सीजन का बेड नहीं मिला। आखिर में सिलेंडर की व्यवस्था की और अब मरीज को घर पर ही ऑक्सीजन लगाई जा रही है। ऑक्सीजन लेवल 66 हो गया है।

पिता को लिए कई अस्पतालों में भटके, शाम को मिल पाया बेड

ऋषिनगर निवासी अभिषेक के पिता संक्रमित हैं। अस्पतालों में बेड नहीं मिलने से घर पर ही इलाज ले रहे थे। मंगलवार को ऑक्सीजन लेवल लगातार घटता गया, तो एंबुलेंस की व्यवस्था कर खुद माधवनगर अस्पताल पहुंचे। वहां बाहर से ही मना कर दिया गया कि बेड नही हैं। यहां से सीधे आरडी गार्डी गए। वहां भी कह दिया गया कि ऑक्सीजन वाले बेड की व्यवस्था नहीं है। इसके बाद पाटीदार, गुरुनानक सहित कई निजी अस्पतालों में भटके। आखिर में देशमुख में एक बेड मिला और उपचार शुरू हो सका।

पॉजिटिव बेटा ही मां को क्लीनिक ले गया, एम्बुलेंस भी चली गई

पॉजिटिव बेटा ही अपनी मां को एम्बुलेंस से प्राइवेट डॉक्टर के क्लीनिक पर पहुंचा, यहां शाम 5 बजे का नंबर मिला। ऐसे में एम्बुलेंस का चालक उन्हें यहीं छोड़कर चला गया। उसके बाद उन्होंने ऑटो किया, जिसने उन्हें चरक अस्पताल में छोड़ा। रोगी कल्याण समिति के पूर्व सदस्य राजेश बौराना ने उन्हें यहां पर भर्ती करवाया। बाद में मां भी बाद में जांच में पॉजिटिव पाई गई। दोनों को सोमवार शाम 7 बजे हॉस्पिटल में बेड मिल पाया।

हालात बिगड़ने की बड़ी वजह


1. इंजेक्शन-दवा का संकट

रेमडेसिविर की सप्लाई भी धीमी है। परिजन इंजेक्शन के लिए मेडिकल के चक्कर लगा रहे हैं। फेबीफ्लू टेबलेट भी मार्केट से गायब हो गई है। ऑक्सीजन मशीन भी मार्केट में नहीं मिल पा रही है। 25 हजार में आने वाली यह मशीन 1 लाख 10 हजार में भी नहीं मिल पा रही है।

2. लोगों की लापरवाही

मार्केट से भीड़ कम हो ही नहीं रही थी। इसी कारण संक्रमित लगातार बढ़ रहे। लोग जांच करवाने में भी लापरवाही बरत रहे हैं। हालात बिगड़ने के बाद ही जांच करवा रहे हैं, तब तक लंग्स काफी संक्रमित हो चुके होते हैं।

3. ऑक्सीजन की कमी

सांस की तकलीफ वाले मरीज बढ़ने से ऑक्सीजन की खपत भी बढ़ गई है। प्रशासन रातभर इंदौर और अन्य प्रदेशों से मदद मांगने में लगा रहता है। इसके बाद भी आपूर्ति नहीं हो पा रही है। 25 सिलेंडर की डिमांड पर 5 सिलेंडर ही प्राइवेट अस्पतालों को देते हैं।

4. डिस्चार्ज का समय बढ़ा

कोरोना के शुरुआती समय में मरीज 5 से 7 दिन में डिस्चार्ज हो जाता था। अब स्थिति विकट है। लंग्स पर संक्रमण इतना है कि ठीक होने में 15 से 25 दिन तक लग रहे हैं। ऐसे में मरीज बढ़ तो तेजी से रहे हैं, लेकिन डिस्चार्ज कम हो रहे हैं।

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