500 से की थी शुरुआत, आज 25 करोड़ का टर्नओवर

उज्जैन. इरादों में दृढ़ता और लक्ष्य पाने का जज्बा हो तो रास्ते खुद ब खुद बन जाते हैं। पुरखों से मिली विरासत से हर कोई मुकाम पा लेता है, लेकिन मुफलिसी से शिखर तक पहुंचना हर किसी के बूते की बात नहीं। शहर के ऐसे ही एक सफल उद्यमी हैं रमेश साबू। चौथी कक्षा में थे तब पिता का देहांत हो गया। मां ने दो भाइयों व बहन को जैसे-तैसे पाला। अखबार बेचकर, वकीलों के यहां टाइपिंग कर, औरों को पढ़ाकर इंजीनियरिंग की।

 

इंदौर से महज 500 रुपए लेकर उज्जैन आए

इंदौर से साल 1973 में महज 500 रुपए लेकर उज्जैन आए, तब अपना यहां कोई नहीं। संघर्ष की प्रेरणादायी इबारत लिखी और अब 25 करोड़ के सालाना टर्नओवर वाले बॉक्स उद्योग के मालिक हैं। 100 श्रमिकों का परिवार इस उद्योग से पलता है।

 

मुफलिसी से सफल उद्यमी तक का सफर

साल 1969 में इंदौर से इंजीनियरिंग डिग्री हासिल की। जॉब की बजाय खुद का कुछ करने की तमन्ना थी। 1973 में उज्जैन में बसे। कुछ साल मेहनत कर बॉक्स उद्योग की प्लानिंग की। उद्योग विभाग व प्रशासनिक अधिकारियों का सहयोग मिला, 200 रुपए माह में मक्सी रोड उद्योगपुरी में लीज की जमीन मिली। तब बैंक से उद्योग स्थापना के लिए 100 प्रतिशत ऋण (30 हजार रुपए) मिला। इससे मशीनें व सामान खरीदा। बॉक्स पैकर्स के नाम से उद्योग संचालित है, जिसमें पुष्ठे बनते हैं। फिलहाल 25 करोड़ का सालाना टर्नओवर है। साबू का बॉक्स उद्योग उज्जैन का पहला था। बाद में उन्होंने अन्य को इंस्पायर किया। आज उज्जैन के बॉक्स देशभर में जाते हैं। वर्तमान में 20 बॉक्स उद्योग संचालित है, जिनमें सैकड़ों श्रमिक कार्यरत हैं।

 

सफलता का मंत्र : साध्य पाने साधन पवित्र हो

सफलता के मुकाम पर पहुंचे साबू ने कहा कि साध्य को पाने हमेशा साधन पवित्र होना चाहिए। तभी सम्मान व लंबे समय तक साख बनी रहती है। अपवित्र साधनों से पाई सफलता वो सम्मान नहीं दे पाती। आज के युवा थोड़ी सी असफलता से निराश होकर आत्महत्या जैसा कायराना कदम उठा लेते हैं या भटक जाते हैं। माना आज का युग कठिन है, लेकिन दृढ़ निश्चय और लगन से सबकुछ पाया जा सकता है। यदि मैं उस वक्त (कुल पूंजी 500 रु.) हिम्मत हार जाता तो शायद गुमनामी में जी रहा होता।

 

कई ओहदों पर रहे, कुछ बड़ी उपलब्धियां

साबू मप्र के पहले व्यक्ति हैं, जिन्हें 1984 में जूनियर चेंबर इंटरनेशनल में नेशनल प्रेसीडेंट चुना गया। आरजीपीवी में 7 साल कार्यपरिषद मेंबर व विक्रम विवि में 1990 में सिनेट मेंबर रहे। कमेंटेटर सुशील दोशी के साथ खेल युग मैग्जीन शुरू की। सालों तक सफल प्रकाशन किया, कॉमर्स इंडस्ट्रीज ऑफ इंडिया सहित कई संस्थाओं से अवॉर्ड व सम्मान मिले। साल 1984 में जेसीस व बजाज ऑटो के साथ कश्मीर से कन्याकुमारी तक नेशनल एकता रैली निकाली। सभी प्रांतों के युवा शामिल। इस पर फिल्म भी बनीं।

महानंदा नगर निवासी रमेश साबू का जन्म गरीब परिवार में हुआ। लेकिन मेहनत व लगन ने उन्हें आज का सफल उद्यमी बनाया। यूनिवर्सिटी में शिक्षा के साथ छात्र राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाले साबू व्यापार के साथ रचनात्मक गतिविधियों में रुचि रखते हैं। अच्छी शिक्षा हासिल करने के बाद भी सफलता या अच्छे जॉब से दूर सैकड़ों युवाओं के लिए साबू का जीवन प्ररेणादायी है। यदि लगन व खुद पर भरोसाहैतो वक्त बदलता है और मंजिल तक पहुंचा जा सकता है।

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