यंग अचीवर : शौक को बनाया कॅरियर, विक्रम अलंकरण सम्मान मिला

उज्जैन | संगीत कुछ समय का आकर्षण नहीं है, यह जीवन भर की साधना है। इसे सीखने के लिए सच्चा व गहरा इश्क चाहिए। दो दिन की लहर संगीतकार नहीं बनाती, संगीत पूरा जीवन मांगता है। सच्ची लगन और मेहनत से ही लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए गुरु का शिष्य के प्रति और शिष्य का गुरु के प्रति समर्पित भावना का होना आवश्यक है।

यह कहना है महाकाल चौराहा निवासी तबला अनुदेशक विशाल शिंदे का। विशाल महिला व बाल विकास विभाग की ओर से विक्रम कीर्ति मंदिर में संचालित संभागीय बाल भवन में बच्चों को तबले में पारंगत बना रहे हैं। वे बताते हैं कि लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें पांच विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए। श्रद्धा, अभ्यास, नियम, बुद्धि और धैर्य।

२० साल से सिखा रहे तबला

इंदिरा कला संगीत विवि खैरागढ़ से तबला वादन में एमए करने वाले ३८ वर्षीय विशाल २० साल से बच्चों को यह हुनर सिखा रहे हैं। उन्होंने गायन और हारमोनियम में भी प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से सीनियर डिप्लोमा किया है। इन विधाओं के लिए उन्हें कई बार सम्मान भी मिल चुका है। संगीत विश्वविद्यालय उन्हें बतौर तबला परीक्षक आमंत्रित भी करते हैं। उनके तबला गुरु डॉ प्रवीण उद्धव और हारमोनियम व गायन गुरु तुलसीराम कार्तिकेय हैं।

इस साल मिला विक्रम अलंकरण

उज्जैन में होने वाले विक्रमोत्सव में विशाल को इस साल तबला वादन में विक्रम अलंकरण सम्मान मिला है। शहर में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी वे प्रस्तुति देते हैं। चंपाषष्ठी महोत्सव, मंगलमूर्ति महोत्सव, उमा सांझी महोत्सव, श्री सत्य साईं बाबा महोत्सव, इस्कॉन महोत्सव, विक्रम उत्सव, श्री साईंदास बाबा महोत्सव के अलावा भारत भवन भोपाल और संस्कार भारती सतना में भी प्रस्तुति दे चुके हैं। विशाल बताते हैं तबला वादन की प्रेरणा उन्हें करीब २५ पहले मिली। उनके घर में श्री सत्यसाईं बाबा के भजन होते हैं। इस दौरान वे तबला वादन करने लगे। फिर शौक को ही कॅरियर बना लिया। इसमें गुरुओं के साथ ही पिता रणजीत शिंदे, माता प्रमिला शिंदे और बड़े भाई प्रशांत शिंदे ने काफी मदद की।

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