आखिर क्यों भगवान शिव कहलाए त्रिपुरारी? जाने इसके पीछे की दिलचस्प कहानी…

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:

भगवान शिव, जिन्हें महादेव भी कहा जाता है, उनका स्थान त्रिमूर्ति में है, जहाँ वे ब्रह्मा और विष्णु के साथ सृष्टि के तीन मुख्य तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वैसे तो उनके अनेक नाम हैं, जो उनकी विभिन्न विशेषताओं और गुणों को दर्शाते हैं। भगवान शिव के अनेक नामों के पीछे गहरी आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक महत्व छिपा है। बता दें, भगवान शिव के अनेक नामों में से एक त्रिपुरारी भी है। तो आइए जानते हैं कि भगवान शिव का नाम त्रिपुरारी क्यों पड़ा?

शिवपुराण में वर्णित एक महत्वपूर्ण कथा है, जिसमें दैत्य तारकासुर के तीन पुत्रों के बारे में बताया गया है। इन तीन पुत्रों के नाम थे: तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। ये तीनों अत्यंत बलशाली और पराक्रमी थे। दैत्य तारकासुर के अत्याचार के कारण जब भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया, तो उसके पुत्रों को अपने पिता की मृत्यु का बहुत दुख हुआ। तब क्रोध और दुख के कारण उन्होंने कठोर तपस्या कर भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया और देवताओं से अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उनसे अमर होने का वरदान मांगा। लेकिन जब ब्रह्मा जी ने यह वरदान देने से इंकार कर दिया, तब तारकासुर के तीनों पुत्रों ने ब्रह्मा जी से कहा कि आप हमारे लिए तीन नगर का निर्माण करवाइए ताकि इन नगर के अंदर बैठकर हम पृथ्वी का भ्रमण आकाश मार्ग से करते रहें। एक हजार साल बाद जब हम एक ही जगह पर आ मिलें। उस समय जब हमारे तीनों नगर मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण बने, इसके अलावा कोई हमें मार न पाए। तब ब्रह्माजी ने उन्हें यह वरदान दे दिया।

ब्रह्मा जी के कहने पर मय दानव ने उनके लिए तीन अद्भुत नगरों का निर्माण कर दिया। तारकाक्ष के लिए सोने का नगर, कमलाक्ष के लिए चांदी का नगर और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। इन तीन नगरों को सामूहिक रूप से त्रिपुर कहा जाता था और ये आकाश में घुमा करते थे।

इन तीनों नगरों के असुरों ने अपनी शक्ति और वरदान का दुरुपयोग करते हुए तीनों लोकों में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। उनके अत्याचारों से त्रस्त होकर देवताओं ने भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव से सहायता मांगी। तब भगवान शिव ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार की और उन्हें आश्वासन दिया कि वे त्रिपुर का विनाश करेंगे। दिव्य रथ और समस्त देवताओं की संयुक्त शक्ति से बना बाण लेकर भगवान शिव त्रिपुर का नाश करने के लिए चले।

जैसे ही त्रिपुर के तीनों नगर एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर तुरंत उनका विनाश कर दिया। त्रिपुर का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव का जयकारा लगाने लगे। इस प्रकार, भगवान शिव ने त्रिपुर का नाश किया और त्रिपुरारी कहलाए।

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