उज्जैन के मंगरोला की आबादी 1100 और मोर 600 से भी ज्यादा, गांव वालों ने खोला है संरक्षण केंद्र

उज्जैन से महज 7 किमी दूर चिंतामन रोड पर मंगरोला गांव वैसे तो सामान्य ग्रामीण इलाकों की तरह ही है, लेकिन इस गांव को विशेष बनाते हैं यहां बसने वाले मोर। गांव के घर-घर में मोर देखे जा सकते हैं। यहां तक की मोर वहां के लोगों के कंधों पर भी बैठ जाते हैं। 1100 आबादी वाले इस गांव में 600 से ज्यादा मोर हैं। इसे मोरों का गढ़ भी कहा जाता है। गांव वालों ने खुद से ही मोर संरक्षण केंद्र खोला है। मोरों के दाने-पानी के इंतजाम के साथ घायल होने पर मोरों के इलाज तक ग्रामीण खुद करते हैं।

अमूमन शर्मीले और डरपोक स्वभाव वाले मोर अब मंगरोला गांव का हिस्सा बन चुके हैं। जिस तरह घर में पालतू जानवर कुत्ते या बिल्ली नजर आती हैं, उसी तरह इस गांव के कई घर और छतों पर मोर नजर आ जाएंगे। मोरों की बढ़ती संख्या को देखते हुए गांव के ही कुछ युवाओं ने इन्हें संरक्षित करने की ठानी।

मंगरोला में रहने वाले जितेंद्र ठाकुर ने बताया कि मोरों को बचाने के लिए गांव वालों ने मिलकर पहले खुद से धनराशि जमा की और मोर संरक्षण केंद्र बनाया। इसमें मोरों के लिए उपचार और रहने के लिए जगह बनाई। साथ ही, रोज दाना-पानी की भी व्यवस्था की। ये जानकारी उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव को लगी, तो उन्होंने भी विधायक निधि से 5 लाख रुपए की मदद की। इसके बाद गांव में ही सरकारी जमीन पर मोर संरक्षण केंद्र की शुरुआत हो गई।

गांव में मोर फ्रेंडली स्वभाव के

मंगरोला गांव में मोर ग्रामीणों से इतने ज्यादा घुल-मिल गए हैं कि अब सामान्य रूप से कई बार मोर के बच्चे भी घरों में देखने को मिल जाते हैं। गांव से लगे करीब 15 अलग-अलग गांव में भी इसी तरह मोरों की संख्या अब बढ़ने लगी है। पंख फैलाए मोर को देखने के लिए कई बार लोग जंगलों और जू जाते हैं, लेकिन मंगरोला में ये नजारा आम है।

युवाओं ने सरंक्षण का जिम्मा उठाया

गांव के युवाओं ने मोरों के सरंक्षण का जिम्मा उठाया है। कई बार मोर खेतों में कीड़े खाते समय कीटनाशक भी खा लेते हैं। इससे कई बार वे बीमार पड़ जाते हैं, तो कई बार जंगली जानवर हमला कर उन्हें घायल कर देते हैं। ऐसे में युवाओं ने मोरों को अस्पताल ले जाकर उपचार करने से लेकर उनकी देखभाल करने तक का जिम्मा उठा रखा है।

10 बीघा जमीन मिली प्रशासन से

गांव में लगातार मोरों की बढ़ रही संख्या देखकर जिला प्रशासन को ग्रामीणों ने सरंक्षण केंद्र के नाम पर जमीन मांगी। 2010 में 10 बीघा जमीन गांव में आवंटित कर दी गई। आज मोर सरंक्षण केंद्र को जितेंद्र ठाकुर, सचिव रविंद्र सिंह, श्रवण सिंह, भारत सिंह, वीरेंद्र सिंह सहित अन्य ग्रामीण संभाल रहे हैं। जितेंद्र ठाकुर ने बताया कि यह प्रदेश का पहला मोर संरक्षण केंद्र है। यहां 600 की संख्या में मोर हैं।

अंडे और मोर को शिकारियों से भी बचाते हैं

मोर गांव में इतने ज्यादा फ्रेंडली हो चुके हैं कि अंडे सरंक्षण केंद्र के साथ घर के बगीचे में भी दे देते हैं। ग्रामीण ध्यान रखते हैं कि मोरों के अंडे को नुकसान नहीं पहुंचे। ग्रामीण मोर के खाने के लिए दाने-पानी का प्रबंध करने से लेकर उनको अस्पताल ले जाने तक की व्यवस्था करवाते हैं। ये भी ध्यान रखते हैं कि मोर का शिकार नहीं कर ले। कई बार मोर के पंख और अंधविश्वास के चलते लकवा पीड़ित मरीज की मालिश के लिए मोर के खून का उपयोग करने के लिए मोर का शिकार करते हैं।

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