40/84 श्री कुण्डेश्वर महादेव

40/84 श्री कुण्डेश्वर महादेव

40/84 श्री कुण्डेश्वर महादेव : एक बार माता पार्वती ने शिवजी से कहा कि उनका पुत्र वीरक कहां है तो शिवजी ने कहा कि तुम्हारा पुत्र महाकाल वन में तपस्या कर रहा है। इस पर पार्वती ने शिव से कहा कि वे उसे देखना चाहती है, इसलिए वे भी उनके साथ चले। दोनो नंदी पर सवार होकर महाकाल वन के लिए निकल पडे। रास्ते में एक पर्वत पर पार्वती के भयभीत होने से कुछ देर…

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41/84 श्री लुम्पेश्वर महादेव

41/84 श्री लुम्पेश्वर महादेव

41/84 श्री लुम्पेश्वर महादेव : म्लेच्छ गणों का राजा था लुम्पाधिप। उसकी रानी थी विशाला। एक बार राजा ब्राम्हणों के कहने पर युद्ध करने के लिए सामग नामक ब्राम्हण के आश्रम गया। वहां राजा ने आश्रम में कामधेनू गाय की मांग की ब्राम्हण ने मना किया तो राजा ने कामधेनू गाय के साथ पूरे आश्रम का नाश कर दिया। राजा ने अपने बाणों से सागम मुनि का भी वध कर दिया ओर वहां से चला…

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42/84 श्री गंगेश्वर महादेव

42/84 श्री गंगेश्वर महादेव

42/84 श्री गंगेश्वर महादेव : आकाश मार्ग से गंगा जब पृथ्वी पर प्रकट हुई तो भगवान शंकर ने उसे अपनी जटा में धारण किया। शिवजी ने जटा में धारण करने के बाद उसे धरती पर नही आने दिया, इससे गंगा क्रोधित हो गई ओर शिवजी के शरीर को शीतल कर दिया। शिवजी ने भी क्रोध में गंगा को जटा में बांध लिया। कई कल्प वर्षो तक गंगा ने जटा में ही तपस्या की। भागीरथ की…

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43/84 श्री अंगारेश्वर महादेव

43/84 श्री अंगारेश्वर महादेव

43/84 श्री अंगारेश्वर महादेव पहले कल्प में लाल शरीर की शोभावाला टेढा शरीर वाला क्रोध से युक्त एक बालक शिव जी के शरीर से उत्पन्न हुआ। इसे शिवजी ने धरती पर रख दिया। उसका नाम भूमिपुत्र हुआ। जन्म से ही उसका शरीर भयावह रहा। जब वह धरती पर चलने लगा तो धरती कांपने लगी, समुद्रो में तुफान आने लगा। यह सब देखकर देवताओं ओर मनुष्यों में चिंता होने लगी ओर वे देवगुरू बृहस्पति के पास…

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44/84 श्री उत्तरेश्वर महादेव

44/84 श्री उत्तरेश्वर महादेव

44/84 श्री उत्तरेश्वर महादेव पहले इंद्र राजा ने मेघो को वृष्टि करने के लिए नियमानुसार आदेश से नियमानुसार वर्षा होती थी। कुछ समय तक मेघों ने अपनी इच्छानुसार वर्षा करना शुरू कर दिया जिससे पृथ्वी जलमग्न होने लगी। यज्ञ और हवन तक बंद हो गए जिसको देखकर ऋषि मुनि भयभीत होने लगे। इसकी शिकायत ऋषि मुनियों एवं देवगुरू ने ब्रम्हा से की। ऋषियों की परेशानी को सुनकर देवगुरू ने इंद्र को बुलाया। इंद्र ने देवगुरू…

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45/84 श्री त्रिलोचनेश्वर महादेव

45/84 श्री त्रिलोचनेश्वर महादेव

45/84 श्री त्रिलोचनेश्वर महादेव बिरजनामा मंदिर पीठ पर स्थित त्रिलोचनेश्वर महादेव में सालों पूर्व कबूतर का जोडा रहता था। दोनो भगवान का दर्शन करते ओर अर्पित जल पीते भक्तो द्वारा की जाने वाली भगवान जयकार, भजन कीर्तन को सुनते रहते थे। एक दिन एक श्येन वहां आया ओर सोचने लगा कि केसे वह इनका भक्षण करें। कबूतरी ने श्येन को देख लिया ओर वह चिंता करते हुए कबूतर से कहने लगी कि व श्येन हमे…

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46/84 श्री वीरेश्वर महादेव

46/84 श्री वीरेश्वर महादेव

46/84 श्री वीरेश्वर महादेव प्राचीन समय में अमित्रजित नाम का एक राजा था। वह प्रजा पालक था। उसके राज्य में कोई दुखी नही था। पूरे राज्य मे एकदशी का व्रत किया जाता था, जो व्रत नही करता था उसे दंड दिया जाता था। एक बार नारद मुनि राजा से मिलने आए। उन्होने राजा से कहा कि माता विद्याधर की कन्या मलयगंधिनी को कंकाल केतु नामक दानव पाताल में चंपावति नगर में ले गया है। नारद…

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47/84 श्री नूपुरेश्वर महादेव

47/84 श्री नूपुरेश्वर महादेव

47/84 श्री नूपुरेश्वर महादेव एक बार भगवान शंकर का गण नूपुर इंद्र की सभा में पहुंचा। वहां अप्सराएं नृत्य कर रही थी। नूपुर ने काम के वश में आकर उवर्शी को फूल फेककर मारा, जिससे उवर्शी क्रोधित हो गई। कुबेर ने क्रोधित होकर नूपुर को मृत्युलोक में गिरने का श्राप दिया। वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। तभी मनसा देवी ने प्रकट होकर नूपुर से कहा कि तुम महाकाल वन में जाओं ओर दक्षिण भाग में…

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48/84 श्री अभयेश्वर महादेव

48/84 श्री अभयेश्वर महादेव

48/84 श्री अभयेश्वर महादेव एक बार कल्प समाप्त होने पर चंद्र ओर सूर्य भी नष्ट होगे। इस पर ब्रम्हा को चिंता हुई कि अब सृष्टि की स्थापना केसे होगी, इस दुख के कारण आंसू गिरे जिससे हारव ओर कालकेलि नामक दो दैत्य प्रकट हुए। सृष्टि पर कुछ न होने के कारण दोनो दैत्य ब्रम्हा को मारने के लिए दौड़े। ब्रम्हा वहां से भागे। उन्होने समुद्र के बीच प्रकाश देखा ओर पुरूष से उसका परिचय पूछा…

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49/84 श्री पृथुकेश्वर महादेव

49/84 श्री पृथुकेश्वर महादेव

49/84 श्री पृथुकेश्वर महादेव अंगराज के पूत्र वेन के अंगो के दोहन से पृथु नामक एक बालक का जन्म हुआ। पृथु महापराक्रमी ओर जगत विख्यात हुआ। पृथु के राज्य में हवन नही होते थे, वेद मंत्रो का उच्चरण भी नही होता था। सारी प्रजा हाहाकार कर रही थी। राजा ने क्रोध मे आकर त्रिलोक को जलाने की इच्छा की । इसी समय नारद मुनि वहां प्रकट हुए ओर राजा से कहा कि पृथ्वी ने अन्न…

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